Class 12th Chapter 7 PART 14 ll क्लोरीन के प्रमुख ऑक्सी अम्ल ll अंतर हैलोजन यौगिक ll

Class 12th Chapter 7 PART 14 ll क्लोरीन के प्रमुख ऑक्सी अम्ल ll अंतर हैलोजन यौगिक ll


प्रश्न - क्लोरीन के प्रमुख ऑक्सी अम्लों के नाम ,सूत्र , ऑक्सीकरण अवस्था एवं उनकी संरचना सहित लिखिए ।
उत्तर - ऑक्सी अम्ल का नाम  सूत्र       ऑक्सीकरण अवस्था 
1. हाइपोक्लोरस                  HOCl       +1
2. क्लोरस                          HClO2     +3
3. क्लोरिक अम्ल                HClO3      +5 
4. पर क्लोरिक अम्ल।          HClO4      +7



 प्रश्न - अंतर हैलोजन यौगिक क्या होते हैं ? अंतर हैलोजन योगिकों की संरचनाएं दीजिए ।
उत्तर - अंतर हैलोजन यौगिक - दो या दो से अधिक विभिन्न हैलोजन परमाणुओं के संयोग से बने सह-संयोजक योगिक ,अंतर हैलोजन यौगिक कहलाते हैं।
हैलोजन तत्व की ऋण विद्युता में बहुत कम अंतर होता है इसलिए हैलोजन तत्व परस्पर इलेक्ट्रॉनों का साझा करके सहसंयोजक योगिक बनाते हैं , यह यौगिक अंतर हैलोजन यौगिक कहलाते हैं।

अंतर हैलोजन योगिकों के प्रकार - 
यह यौगिक चार प्रकार के होते हैं इनका सामान्य सूत्र AXn होता है जहां n = 1, 3 ,5 ,7 है ।

1.AX - ClF ,BrF ,BrCl ,IBr , ICl

2.AX3 - ClF3 , BrF3 , ICl3

3.AX5 - BrF5 , IF5

4.AX7 - IF7


1.AX प्रकार - इनकी आकृति रेखीय होती है। ClF में क्लोरीन का मूल अवस्था में इलेक्ट्रॉनिक विन्यास दिखाया गया है । इसमें एक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन है , जो दूसरे हैलोजन परमाणु से सह संयोजी बंध बनाकर अंतरा - हैलोजन यौगिक बनाता है।


2.AX3 प्रकार - इनकी T - आकृति होती है । जैसे -ClF3 अणु । इनका केंद्रीय परमाणु में sp3d संकरण होता है।


3. AX5 प्रकार - इस प्रकार के यौगिकों में sp3d2 संकरण होता है और इनकी संरचना वर्ग पिरामिडीय होती है , जिसमें एक स्थान पर एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म रहता है ।
जैसे IF5 अणु का बनना ।


4. AX7 प्रकार - इनकी आकृति पंचकोणीय पिरामिडीय होती है जो कि sp3d3 संकरण से बनती है । 
जैसे - IF7 अणु में होने वाला संकरण ।


अंतर हैलोजन यौगिकों के उपयोग - इन योगिकों की ध्रुवीय प्रकृति होने के कारण इनका उपयोग विलायक रूप में होता है । यह अजलीय विलायक कहलाते हैं । इनका उपयोग फ्लोरीनीकारक कारक के रूप में भी होता है ।

प्रश्न - क्लोरीन बनाने की प्रयोगशाला विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर - प्रयोगशाला विधि - HCl और MnO2 की क्रिया से - एक फ्लास्क में MnO2 लिया जाता है और फिर थिसिल फनल द्वारा सांद्र HCl डाला जाता है । HCl की मात्रा इतनी डाली जाती है कि MnO2 पूर्ण रूप से ढक जाए । फ्लास्क को धीरे - धीरे गर्म करते हैं । इससे हरे - पीले रंग की Cl2 गैस निकलती है । 

MnO2 + 4HCl ------> MnCl2 + H2O + Cl2


प्राप्त Cl2 गैस में HCl और जलवाष्प की अशुद्धियां होती हैं , जो क्रमशः जल और सांद्र H2SO4 में प्रवाहित करने से दूर हो जाती हैं।

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