12CH5 Surface Chemistry

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                                श्री कोचिंग क्लासेस
                            Chemistry by H.K Sir
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प्रश्न  1. पृष्ठ रसायन क्या है ?
उत्तर - पृष्ठ रसायन - पृष्ठ रसायन, रसायन विज्ञान की महत्वपूर्ण शाखा है जिसके अंतर्गत हम सतह (इंटरफ़ेस) पर होने वाली घटनाओं का अध्ययन करते हैं ।
जैसे - घुलना ,क्रिस्टलीकरण ,संक्षारण, इलेक्ट्रोड की प्रक्रियाएं आदि।

                                    अथवा

यह रसायन की वह शाखा है जिसके अंतर्गत ठोसों के पृष्ठ तल के स्वभाव एवं इनके पृष्ठ तल पर होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता है।



प्रश्न 2. निम्न को समझाइए  - 
1. अधिशोषण (Adsorbtion) - जब किसी पदार्थ (गैस  या  द्रव) की किसी ठोस पर उपस्थित सांद्रता ठोस के स्थूल में उपस्थित सांद्रता की अपेक्षा अधिक होती है तो इस घटना को अधिशोषण कहते हैं ।


2.अधिशोषक (Adsorbent) - ऐसे ठोस पदार्थ जिनके पृष्ठ या सतह पर अधिशोषण होता है अधिशोषक कहलाते हैं ।

जैसे - सिलिका जेल, चारकोल, बोन चारकोल ,बारीक चूर्ण धातु -प्लैटिनम, पैलेडियम ,निकिल आदि।


3.अधिशोष्य (Adsorbate) - ऐसे गैसीय या द्रव पदार्थ जो अधिशोषक की सतह पर अधिशोषित होते हैं अधिशोष्य कहलाते हैं जैसे - नमी (moisture), अमोनिया गैस ,हाइड्रोजन क्लोराइड(HCl), सल्फर डाइऑक्साइड (SO2),अनेक जहरीली गैस आदि


4.अवशोषण (Absorption) - यह पदार्थ के भीतर तक होने वाली घटना है जब ठोस का द्रव पदार्थ के संपूर्ण भाग में कोई पदार्थ समान रूप से वितरित रहता है तब इस घटना को अवशोषण कहते हैं । अवशोषण प्रारंभ से अंत तक एक समान दर से होता है ।

जैसे -
a. निर्जल कैल्शियम क्लोराइड द्वारा जल का अवशोषण 

b. जल द्वारा अमोनिया का अवशोषण


5. शोषण (Sorption) - वह घटना जिसने अधिशोषण एवं अवशोषण प्रक्रिया एक साथ होती है ,शोषण कहलाती है । इस प्रक्रिया में यह निश्चित नहीं हो पाता है कि अधिशोषण व अवशोषण कौन सी प्रक्रिया है।

जैसे -
a. हाइड्रोजन पहले चारकोल की सतह पर एकत्र होती है , किंतु बाद में धीरे-धीरे हाइड्रोजन चारकोल के भीतर तक वितरित हो जाती है । इस प्रकार चारकोल द्वारा हाइड्रोजन का अधिशोषण एवं अवशोषण दोनों प्रक्रम होते हैं।


b. कुछ रंजक ऐसे होते हैं जिनमें अधिशोषण एवं अवशोषण की प्रक्रिया एक साथ होती है।


6. विशोषण (Desorption) - यह अधिशोषण के विपरीत प्रक्रिया है अतः अधिशोषण के व्युत्क्रम प्रक्रिया को विशोषण कहते हैं । अतः वह प्रक्रिया जिसमें अधिशोषक की सतह पर से अधिशोष्य को हटाया जाता है ,विशोषण कहलाता है।


7. अधिधारण (Occulsion) - गैसों का धातु द्वारा शोषित होना अधिधारण कहलाता है।


                                  PART - 2


प्रश्न - अधिशोषण किसे कहते हैं ? यह कितने प्रकार के होते हैं उदाहरण सहित लिखिए ।
उत्तर -  अधिशोषण - जब किसी पदार्थ( गैस या द्रव ) कि किसी ठोस पर उपस्थित सांद्रता , ठोस के स्थूल में उपस्थित सांद्रता की अपेक्षा अधिक होती है , तो इस घटना को अधिशोषण कहते हैं ।

उदाहरण -
1. प्लेटिनम की सतह पर हाइड्रोजन का अधिशोषण ।
2. अमोनिया का चारकोल द्वारा अधिशोषण ।
3. जलवाष्प का सिलिका जेल द्वारा अधिशोषण ।
4.  विभिन्न गैसों का जंतु चारकोल पर होने वाला अधिशोषण ।



अधिशोषण के प्रकार -  अधिशोषण निम्न दो प्रकार का होता है -
                                    1. भौतिक अधिशोषण
                                    2. रासायनिक अधिशोषण

1. भौतिक अधिशोषण - जब अधिशोष्य , अधिशोषक की सतह पर अत्यंत दुर्बल वाण्डरवाल्स आकर्षण बल द्वारा बंधा रहता है , तो उस अधिशोषण को भौतिक अधिशोषण कहते हैं । इसमें अधिशोषण ऊष्मा का मान कम होता है , इसलिए भौतिक अधिशोषण उत्क्रमणीय होते हैं । यह बहूपरतीय होता है ।

उदाहरण -
1. विभिन्न गैसों का जंतु चारकोल पर होने वाला अधिशोषण ।
2. नाइट्रोजन गैस का अभ्रक (माइका) पर होने वाला अधिशोषण


2. रासायनिक अधिशोषण - जब अधिशोष्य , अधिशोषक की सतह पर  रासायनिक बंधुओं द्वारा बंधा रहता है , तो उस अधिशोषण को  रासायनिक अधिशोषण कहते हैं । इसमें अधिशोषण ऊष्मा का मान  उच्च (40-400KJ/मोल)  होता है , इसलिए रासायनिक अधिशोषण उत्क्रमणीय होते हैं । यह एकपरतीय होता है ।

उदाहरण -
1. ऑक्सीजन का टंगस्टन पर अधिशोषित होना ।
2. हाइड्रोजन का निकल पर अधिशोषित होना ।




प्रश्न - अधिशोषण व अवशोषण में अंतर लिखिए ।
उत्तर -


प्रश्न - भौतिक एवं रासायनिक अधिशोषण में अंतर लिखिए ।
उत्तर -




प्रश्न - किसी ठोस पर गैस के अधिशोषण को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं ? उनके नाम लिखिए ।
                                      अथवा
ठोसों द्वारा गैसों के अधिशोषण को प्रभावित करने वाले कारक लिखिए ।
उत्तर - किसी ठोस या गैस के अधिशोषण को प्रभावित करने वाले कारक निम्न है -
1. गैस की प्रकृति

2. अधिशोषण का पृष्ठीय क्षेत्रफल

3.  दाब

4.  ताप

5. अधिशोषण की सक्रियता




प्रश्न  -  अधिशोषण समतापी वक्र क्या है ?  फ्रेंडलिक अधिशोषण समतापी वक्र का वर्णन कीजिए ।
उत्तर - अधिशोषण समतापी  -  अधिशोषक द्वारा अधिशोषित गैस की मात्रा में स्थिर ताप पर दाब के साथ परिवर्तन एक वक्र के माध्यम से व्यक्त किया जा सकता है , जिसे अधिशोषण समतापी वक्र कहते हैं ।
अधिशोषण समतापी वक्र दो प्रकार के होते हैं -
1. फ्रेंडलिक समतापी वक्र

2. लैंगुमर समतापी वक्र


1. फ्रेंडलिक समतापी वक्र  - फ्रेंडलिक ने ठोस अधिशोषक के इकाई द्रव्यमान द्वारा एक निश्चित ताप पर अधिशोषित गैस की मात्रा तथा दाब के मध्य एक प्रयोग पर आधारित संबंध दिया , जिसे फ्रेंडलिक समतापी वक्र कहते हैं ।
इस संबंध को निम्न समीकरण द्वारा व्यक्त किया जा सकता है -

               x/m  =  k.p1/n   ---------(1)

जहां x = अधिशोषक के m द्रव्यमान द्वारा p दाब पर अधिशोषित गैस का द्रव्यमान है ।
K एवं n स्थिरांक हैं , जो किसी निश्चित आप पर अधिशोषक एवं गैस की प्रकृति पर निर्भर करते हैं ।

समीकरण (1) का लघुगुणक लेने पर -

               log x/m = log k + 1/n log p

जहाँ -
x        =  अधिशोषित गैस की मात्रा
m       =  अधिशोषक गैस का द्रव्यमान
p        = दाब (pressure)
k , n   = स्थिरांक


                               PART - 3



प्रश्न - अधिशोषक के सक्रियण से आप क्या समझते हैं यह कैसे प्राप्त किया जाता है ?

उत्तर - अधिशोषक - अधिशोषक के सक्रियण का अर्थ है- अधिशोषक की अधिशोषण क्षमता । अतः अधिशोषण की सक्रियता को बढ़ाने के लिए निम्न क्रियाकलाप किए जाते हैं -

1. धात्विक अधिशोषक को यांत्रिक या रासायनिक विधि द्वारा खुरदुरा करके ।

2. अधिशोषक को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ कर ।

3.कुछ अधिशोषकों की अधिशोषण क्षमता उच्च ताप पर गर्म करके बढ़ाई जा सकती है ।




प्रश्न - अधिशोषण के अनुप्रयोग लिखिए ।
उत्तर - हमारे दैनिक जीवन में अधिशोषण के अनेक उपयोग हैं उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं -
1. गैस मास्क में - विषैली गैस जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, मेथेन आदि को दूर करने के लिए गैस मास्क में सक्रिय चारकोल प्रयुक्त होता है जो वायुमंडल में उपस्थित विषैली गैसों को अधिशोषित कर लेते हैं।

2. शक्कर के निर्माण में - शक्कर के निर्माण में जंतु चारकोल का प्रयोग इसे रंगहीन करने में करते हैं ।

3. नमी दूर करने में - सिलिका जेल का उपयोग नमी को दूर करने में किया जाता है।

4. उत्प्रेरण में - विषमांग उत्प्रेरक प्रक्रिया में अधिशोषण प्रक्रम की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

5. क्रोमेटोग्राफी में - क्रोमैटोग्राफी द्वारा यौगिकों का शुद्धिकरण भी अधिशोषण सिद्धांत पर आधारित है।





प्रश्न - कौन सी अक्रिय गैस चारकोल की सतह पर सबसे कम मात्रा में और कौन सी गैस सबसे ज्यादा मात्रा में अधिशोषित होगी और क्यों ?
उत्तर - 1.हीलियम(He) अपने कम आणविक द्रव्यमान एवं अणुओं के बीच न्यूनतम वांडर वाल्स बल के कारण चारकोल की सतह पर सबसे कम मात्रा में अधिशोषित होगी।

2. जीनोन (Xe) अपने अधिक आणविक द्रव्यमान एवं अणुओं के बीच अधिकतम वांडरवाल्स बल के कारण चारकोल की सतह पर सबसे ज्यादा अधिशोषित होगी।



                                PART - 4


प्रश्न - उत्प्रेरक किसे कहते हैं  ? यह कितने प्रकार के होते हैं । उदाहरण देकर समझाइए ।
उत्तर - उत्प्रेरक - वह पदार्थ जो अपनी उपस्थिति मात्र से किसी रासायनिक क्रिया केेेेेेे वेग  को घटा या बढ़ा देता है और स्वयं क्रिया केे अंत में अपरिवर्तित रहता है, उत्प्रेरक कहलाता है तथा इस प्रकार की क्रिया उत्प्रेरण कहलाती है ।

उदाहरण - अमोनिया निर्माण की हैबर विधि में प्लेटिनम(Pt) उत्प्रेरक का कार्य करता है।


उत्प्रेरक का वर्गीकरण - उत्प्रेरक  एवं अभिकारक पदार्थों की भौतिक अवस्था के आधार पर उत्प्रेरण की क्रिया को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है - 

1.समांगी उत्प्रेरण - वे रासायनिक अभिक्रियाएं जिनमें क्रिया कारक पदार्थ और उत्प्रेरक एक ही अवस्था में हो, समांगी उत्प्रेरण अभिक्रियाएं कहलाती हैं।

उदाहरण -1. सीस कक्ष विधि द्वारा सल्फ्यूरिक अम्ल के निर्माण में प्रयुक्त उत्प्रेरक एवं क्रिया कारक सभी गैसीय अवस्था में होते हैं-


SO2  +  O2     ---- -------------->       SO3


2. विषमांगी उत्प्रेरण - जब क्रिया कारक पदार्थ और उत्प्रेरक की अवस्थाएं अलग-अलग हों तो ऐसे उत्प्रेरण को विषमांगी उत्प्रेरण कहते हैं।
उदाहरण 1. अमोनिया निर्माण की हैबर विधि में प्रयुक्त आयरन(Fe) चूर्ण ठोस तथा क्रिया कारक गैसीय अवस्था में है।


N2  +  3H2  ------------------->  2NH3


उत्प्रेरक के प्रकार - विशिष्टता के आधार पर उत्प्रेरक चार प्रकार के होते हैं -

1. धनात्मक उत्प्रेरक 

2. ऋणात्मक उत्प्रेरक 

3. स्वउत्प्रेरक 

4. प्रेरित उत्प्रेरक


1. धनात्मक उत्प्रेरक - जब उत्प्रेरक रासायनिक अभिक्रिया के वेग को बढ़ाता है तो इसे धनात्मक उत्प्रेरक तथा इस प्रक्रम को धनात्मक उत्प्रेरण कहते हैं।

2KClO3       ------------------>    2KCl  + O2

यहां मैग्नीज डाई ऑक्साइड धनात्मक उत्प्रेरक का कार्य करता है

2.ऋणात्मक उत्प्रेरक - जब कोई उत्प्रेरक रासायनिक अभिक्रिया की गति को कम कर देता है तो उसे ऋणात्मक उत्प्रेरक  तथा इस घटना को ऋणात्मक उत्प्रेरण  कहते हैं।


H2O2         ----------------->       H2O  + O2

   
यहां फास्फोरिक अम्ल ऋणात्मक उत्प्रेरक  का कार्य करता है।


3. स्व उत्प्रेरक - जब अभिक्रिया से उत्पन्न पदार्थ उत्प्रेरक का कार्य करने लगता है तो उसे स्व उत्प्रेरक कहते हैं तथा इस घटना को स्वउत्प्रेरण कहते हैं।

उदाहरण - अम्लीय पोटेशियम परमैग्नेट(KMnO4)की ऑक्जेलिक अम्ल(COOH) से होने वाली अभिक्रिया में पोटेशियम परमैग्नट का रंग शुरू में धीरे-धीरे गायब होता है परंतु बाद में पोटेशियम परमैग्नेट का रंग शीघ्रता से गायब होने लगता है क्योंकि अभिक्रिया में बना मैंगनीज सल्फेट(MnSO4) इस अभिक्रिया को उत्प्रेरित करने लगता है l
उदाहरण (1)
CH3COOH + H2O ----> CH3COOH + C2H5OH

उदाहरण - (2)
5(COOH)2 + 2KMnO4 + 3H2SO4

----->  K2SO4  +  2MnSO4  +  8H2O

4. प्रेरित उत्प्रेरक - जब कोई एक रासायनिक अभिक्रिया किसी दूसरी रासायनिक अभिक्रिया के लिए उत्प्रेरक का कार्य करती है तो पहली अभिक्रिया प्रेरित उत्प्रेरक कहलाती है।

उदाहरण - सोडियम सल्फाइट को हवा में रखने पर ऑक्सीकरण हो जाता है परंतु सोडियम आर्सेनाइट वायु में ऑक्सीकृत नहीं होता है ।
यदि सोडियम सल्फाइट और सोडियम आर्सेनाइट को मिलाकर हवा में रखें तो दोनों का ऑक्सीकरण हो जाता है । यहां सोडियम सल्फाइट प्रेरित उत्प्रेरक का कार्य करता है ।




                                    PART - 5


प्रश्न - उत्प्रेरकों के प्रमुख गुण लिखिए ।
उत्तर - उत्प्रेरकों के प्रमुख गुण -
1. उत्प्रेरक की अल्प मात्रा ही रासायनिक क्रिया में वेग को प्रभावित करने में पर्याप्त होती है।

2. उत्प्रेरक किसी रासायनिक क्रिया को प्रारंभ नहीं करता है , केवल उसके वेग को घटा या बढ़ा सकता है।

3. उत्प्रेरक साम्यावस्था को नहीं बदलता है , अग्र एवं पश्च  क्रियाओं को समान रूप से उत्प्रेरित करता है।

4. उत्प्रेरक का कार्य विशिष्ट होता है अर्थात एक ही उत्प्रेरक सभी रासायनिक क्रियाओं को उत्प्रेरित नहीं कर सकता है ।

6. उत्प्रेरक उत्पाद की प्रकृति को नहीं बदल सकता है ।




प्रश्न -  उत्प्रेरक वर्धक एवं उत्प्रेरक विष से आप क्या समझते हो ? उदाहरण सहित लिखिए ।
उत्तर - उत्प्रेरक वर्धक - वे पदार्थ जो स्वयं उत्प्रेरक का कार्य नहीं करते हैं , किंतु जिनकी उपस्थिति और उत्प्रेरकों की शक्ति बढ़ा देती है , उत्प्रेरक वर्धक या उत्प्रेरक उत्साहक कहलाते हैं ।
जैसे - अमोनिया निर्माण की हैबर विधि में मालिब्डेनम(Mo) , आयरन(Fe) उत्प्रेरक की शक्ति को बढ़ा देता है ।


N2 + 3H2 -----------------------> 2NH3


उत्प्रेरक विष - वे पदार्थ जो उत्प्रेरक की उत्प्रेरण शक्ति को नष्ट या कम कर देते हैं , उत्प्रेरक विष कहलाते हैं ।
जैसे - सल्फ्यूरिक अम्ल निर्माण की संपर्क विधि में आर्सेनिक ऑक्साइड(As2O3) की उपस्थिति प्लेटिनीकृत एस्बेस्टस की उत्प्रेरक क्षमता नष्ट कर देती है।


SO2 + O2 --------------------> SO3



प्रश्न - उत्प्रेरण के प्रक्रम में  विअधिशोषण की क्या भूमिका है ?
उत्तर - ठोस उत्प्रेरक द्वारा गैसीय अभिकारकों को अधिशोषित करने के बाद मध्य अवस्था ग्रहण करता है , इसके बाद विअधिशोषण होता है , जिसमें अणु अलग-अलग होते हैं । अतः ठोस उत्प्रेरकों के पृष्ठ बार-बार उपलब्ध होते रहते हैं ।



प्रश्न - विषमांगी उत्प्रेरण में अधिशोषण की क्या भूमिका है ?
उत्तर - सामान्यतः विषमांगी उत्प्रेरण में क्रियाकारक गैसीय होते हैं , जबकि उत्प्रेरक ठोस होते हैं । भौतिक अथवा रासायनिक अधिशोषण के द्वारा क्रियाकारकों के अणु ठोस उत्प्रेरक की सतह पर अधिशोषित हो जाते हैं , परिणामस्वरूप सतह पर क्रियाकारक के अणुओं की सांद्रता बढ़ जाती है , अतः अभिक्रिया का वेग भी बढ़ जाता है अर्थात अधिशोषण से अभिक्रिया के वेग में वृद्धि होती है ।


प्रश्न - आकृति वरणात्मक उत्तप्रेरण क्या है।
उत्तर - आकृति वरणात्मक उत्प्रेरण की क्रिया अति विशिष्ट होती है । यह अति विशिष्ट प्रकृति उत्प्रेरक की रंध्र या छिद्र युक्त संरचना तथा अभिकारक एवं उत्पाद के अणुओं के आकार पर निर्भर करती है । इस प्रकार के कुछ उत्प्रेरकों को आकृति चयन करने वाला उत्प्रेरक का जाता है ।
जैसे - जिओलाइट


                                 PART - 6

प्रश्न -  ठोस उत्प्रेरकों की प्रमुख विशेषताएं लिखिए ।
उत्तर -  ठोस उत्प्रेरकों की प्रमुख विशेषताएं निम्न है -
1.सक्रियता
2.वरण क्षमता
3.आकृति चयन

सक्रियता - किसी उत्प्रेरक द्वारा अभिक्रिया की दर को बढ़ाने की क्षमता उसकी सक्रियता कहलाती है।

वरण क्षमता - किसी उत्प्रेरक का किसी रासायनिक अभिक्रिया में एक निश्चित उत्पाद बनाने की क्षमता वरण क्षमता कहलाती है।

उदाहरण - प्लेटिनम उत्प्रेरक नॉर्मल हेप्टेन (C7H16) को केवल टालूईन  में परिवर्तित करता है जो इसकी वरण क्षमता है।

आकृति चयन - कुछ उत्प्रेरक एक निश्चित आकृति वाले अभिकारक के लिए उत्प्रेरक का कार्य करते हैं यह गुण आकृति चयन कहलाते हैं । ऐसे उत्प्रेरक अपने अनुकूल संरचना वाले अभिकारकों के साथ जुड़कर अभिक्रिया को उत्प्रेरित करते हैं, किंतु भिन्न आकार वाले अभिकारकों के लिए उत्प्रेरक का कार्य नहीं करते हैं।
उदाहरण - जिओलाइट उत्प्रेरक छिद्रयुक्त होता है इसलिए जो अभिकारक इसके छिद्र में प्रवेश कर जाते हैं उनके लिए यह उत्प्रेरक का कार्य करता है ।



प्रश्न - उत्प्रेरण के प्रमुख सिद्धांतों के नाम लिखिए।
उत्तर - उत्प्रेरण के प्रमुख सिद्धांत निम्न है -
1. माध्यमिक योगिक सिद्धांत
2. अधिशोषण सिद्धांत
3. संपर्क उत्प्रेरक का आधुनिक सिद्धांत।

1. माध्यमिक योगिक सिद्धांत - इस सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक अभिकारक के साथ उत्प्रेरक संयुक्त होकर पहले माध्यमिक योगिक बनाता है और बाद में उत्पाद बनाकर स्वयं पृथक हो जाता है।
माना एक अभिक्रिया निम्न प्रकार हो रही है -

                 A + C -----------> AC

                AC  +  B  ------> AB  +  C(उत्प्रेरक)

2.अधिशोषण सिद्धांत - इस सिद्धांत के अनुसार पहले अभिकारक उत्प्रेरक की सतह पर सांद्रता बढ़ा देता है और फिर उत्पाद में परिवर्तित हो जाता है।

3. संपर्क उत्प्रेरक का आधुनिक सिद्धांत - पहले अभिकारक उत्प्रेरक की सतह पर अधिशोषित हो जाते हैं जिससे सतह पर इनकी सांद्रता बढ़ जाती है फलस्वरूप अभिक्रिया की दर भी बढ़ जाती है । उत्प्रेरक की सतह पर मुक्त संयोजकता उपस्थित रहती हैं जिससे यह अभिकारक के साथ अस्थाई रूप से बंध बना लेता है अर्थात अभिकारक को अधिशोषित कर लेता है । ऐसा होने से अभिकारक कुछ विकृत तथा तनाव युक्त हो जाता है इसे मध्यवर्ती सक्रिय संकुल कहते हैं ऊर्जा अधिक होने के कारण यह विघटित हो जाता है तथा उत्पाद में परिवर्तित हो जाता है एवं उत्प्रेरक इससे प्रथक हो जाता है जो आगे इसी प्रकार से क्रिया करता है ।
यह सिद्धांत माध्यमिक योगिक सिद्धांत एवं अधिशोषण सिद्धांत का संयुक्त रूप है।




प्रश्न - एंजाइम किसे कहते हैं उदाहरण सहित लिखिए । एवं इसकी क्रिया विधि समझाइए ।
उत्तर - एंजाइम - एंजाइम अणु भार वाले नाइट्रोजन युक्त जटिल कार्बनिक योगिक होते हैं जो जीवित कोशिकाओं में उत्पन्न होते हैं यह मुख्य रूप से जैव रासायनिक अभिक्रिया को उत्प्रेरित करते हैं अतः जैव उत्प्रेरक कहलाते हैं ।

उदाहरण -
1. टायलिन एंजाइम मनुष्य की लार में पाया जाता है जो स्टार्च को ग्लूकोज में बदल देता है।

2. यीस्ट में उपस्थित इनवर्टेज एवं जाइमेज एंजाइम गन्ने की शक्कर को एथिल एल्कोहल में बदल देते हैं ।


एंजाइम उत्प्रेरक की क्रिया विधि - एंजाइम उत्प्रेरक की क्रिया विधि को ताला चाबी के सिद्धांत पर समझाया गया है ।इस सिद्धांत के अनुसार -
अभिकारक व एंजाइम के मध्य वही संबंध होता है जो ताले व चावी के मध्य होता है पहले अभिकारक पदार्थों के साथ जोड़कर मध्यवर्ती सक्रिय संकुल बनाता है इस संकुल में अभिकारक पदार्थ निकट संपर्क में रहते हैं जिससे यह संयुक्त होकर उत्पाद बना लेते हैं।

प्रश्न - सामान्य उत्प्रेरक एवं एंजाइम में अंतर लिखिए।


                               PART - 7


प्रश्न - विलयन किसे कहते हैं । यह कितने प्रकार के होते हैं ।
उत्तर - विलयन - दो या दो से अधिक पदार्थों के समांगी या विषमांगी मिश्रण को विलयन कहते हैं

प्रकार -  विलेय कणों के आधार पर बिलयन को तीन प्रकारों में बांटा गया है -
1.वास्तविक विलयन (True solution)
2.कोलॉयडी विलयन(Colloidal)
3.निलंबन विलयन (Suspension)

1.वास्तविक विलयन (True solution)- वह समांगी विलयन जिसमें विलायक व विलेय के कणों के आकार समान होते हैं वास्तविक बिलयन कहलाता है ।

2.कोलॉयडी विलयन (Colloidal solution)- वह विषमांगी विलयन जिनका आकार 1 nm से 100 nm के मध्य होता है कोलाइडी विलयन कहलाता है।

3.निलंबन विलयन (Suspension solution)- वह विषमांगी विलयन जिसमें विलेय के कणों का आकार 100nm से अधिक होता है निलंबन विलयन कहलाता है।



प्रश्न - कोलाइडी विलयन को किस आधार पर वर्गीकृत किया गया है।
उत्तर - कोलाइडी विलयन को अलग-अलग मापदंडों के आधार पर वर्गीकृत किया गया है -
1. परीक्षिप्त प्रावस्था परिक्षेपण माध्यम की भौतिक अवस्था के आधार पर

2. परिक्षेपण माध्यम की प्रकृति के आधार पर

3.परीक्षिप्त प्रावस्था तथा परिक्षेपण माध्यम के बीच अंतः क्रिया की प्रकृति के आधार पर

4. परीक्षिप्त प्रावस्था के कणों के प्रकार पर आधारित वर्गीकरण



                               PART - 8
 
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प्रश्न  1. पृष्ठ रसायन क्या है ?
उत्तर - पृष्ठ रसायन - पृष्ठ रसायन, रसायन विज्ञान की महत्वपूर्ण शाखा है जिसके अंतर्गत हम सतह (इंटरफ़ेस) पर होने वाली घटनाओं का अध्ययन करते हैं ।
जैसे - घुलना ,क्रिस्टलीकरण ,संक्षारण, इलेक्ट्रोड की प्रक्रियाएं आदि।

                                    अथवा

यह रसायन की वह शाखा है जिसके अंतर्गत ठोसों के पृष्ठ तल के स्वभाव एवं इनके पृष्ठ तल पर होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता है।



प्रश्न 2. निम्न को समझाइए  - 
1. अधिशोषण (Adsorbtion) - जब किसी पदार्थ (गैस  या  द्रव) की किसी ठोस पर उपस्थित सांद्रता ठोस के स्थूल में उपस्थित सांद्रता की अपेक्षा अधिक होती है तो इस घटना को अधिशोषण कहते हैं ।


2.अधिशोषक (Adsorbent) - ऐसे ठोस पदार्थ जिनके पृष्ठ या सतह पर अधिशोषण होता है अधिशोषक कहलाते हैं ।

जैसे - सिलिका जेल, चारकोल, बोन चारकोल ,बारीक चूर्ण धातु -प्लैटिनम, पैलेडियम ,निकिल आदि।


3.अधिशोष्य (Adsorbate) - ऐसे गैसीय या द्रव पदार्थ जो अधिशोषक की सतह पर अधिशोषित होते हैं अधिशोष्य कहलाते हैं जैसे - नमी (moisture), अमोनिया गैस ,हाइड्रोजन क्लोराइड(HCl), सल्फर डाइऑक्साइड (SO2),अनेक जहरीली गैस आदि


4.अवशोषण (Absorption) - यह पदार्थ के भीतर तक होने वाली घटना है जब ठोस का द्रव पदार्थ के संपूर्ण भाग में कोई पदार्थ समान रूप से वितरित रहता है तब इस घटना को अवशोषण कहते हैं । अवशोषण प्रारंभ से अंत तक एक समान दर से होता है ।

जैसे -
a. निर्जल कैल्शियम क्लोराइड द्वारा जल का अवशोषण 

b. जल द्वारा अमोनिया का अवशोषण


5. शोषण (Sorption) - वह घटना जिसने अधिशोषण एवं अवशोषण प्रक्रिया एक साथ होती है ,शोषण कहलाती है । इस प्रक्रिया में यह निश्चित नहीं हो पाता है कि अधिशोषण व अवशोषण कौन सी प्रक्रिया है।

जैसे -
a. हाइड्रोजन पहले चारकोल की सतह पर एकत्र होती है , किंतु बाद में धीरे-धीरे हाइड्रोजन चारकोल के भीतर तक वितरित हो जाती है । इस प्रकार चारकोल द्वारा हाइड्रोजन का अधिशोषण एवं अवशोषण दोनों प्रक्रम होते हैं।


b. कुछ रंजक ऐसे होते हैं जिनमें अधिशोषण एवं अवशोषण की प्रक्रिया एक साथ होती है।


6. विशोषण (Desorption) - यह अधिशोषण के विपरीत प्रक्रिया है अतः अधिशोषण के व्युत्क्रम प्रक्रिया को विशोषण कहते हैं । अतः वह प्रक्रिया जिसमें अधिशोषक की सतह पर से अधिशोष्य को हटाया जाता है ,विशोषण कहलाता है।


7. अधिधारण (Occulsion) - गैसों का धातु द्वारा शोषित होना अधिधारण कहलाता है।


                                  PART - 2


प्रश्न - अधिशोषण किसे कहते हैं ? यह कितने प्रकार के होते हैं उदाहरण सहित लिखिए ।
उत्तर -  अधिशोषण - जब किसी पदार्थ( गैस या द्रव ) कि किसी ठोस पर उपस्थित सांद्रता , ठोस के स्थूल में उपस्थित सांद्रता की अपेक्षा अधिक होती है , तो इस घटना को अधिशोषण कहते हैं ।

उदाहरण -
1. प्लेटिनम की सतह पर हाइड्रोजन का अधिशोषण ।
2. अमोनिया का चारकोल द्वारा अधिशोषण ।
3. जलवाष्प का सिलिका जेल द्वारा अधिशोषण ।
4.  विभिन्न गैसों का जंतु चारकोल पर होने वाला अधिशोषण ।



अधिशोषण के प्रकार -  अधिशोषण निम्न दो प्रकार का होता है -
                                    1. भौतिक अधिशोषण
                                    2. रासायनिक अधिशोषण

1. भौतिक अधिशोषण - जब अधिशोष्य , अधिशोषक की सतह पर अत्यंत दुर्बल वाण्डरवाल्स आकर्षण बल द्वारा बंधा रहता है , तो उस अधिशोषण को भौतिक अधिशोषण कहते हैं । इसमें अधिशोषण ऊष्मा का मान कम होता है , इसलिए भौतिक अधिशोषण उत्क्रमणीय होते हैं । यह बहूपरतीय होता है ।

उदाहरण -
1. विभिन्न गैसों का जंतु चारकोल पर होने वाला अधिशोषण ।
2. नाइट्रोजन गैस का अभ्रक (माइका) पर होने वाला अधिशोषण


2. रासायनिक अधिशोषण - जब अधिशोष्य , अधिशोषक की सतह पर  रासायनिक बंधुओं द्वारा बंधा रहता है , तो उस अधिशोषण को  रासायनिक अधिशोषण कहते हैं । इसमें अधिशोषण ऊष्मा का मान  उच्च (40-400KJ/मोल)  होता है , इसलिए रासायनिक अधिशोषण उत्क्रमणीय होते हैं । यह एकपरतीय होता है ।

उदाहरण -
1. ऑक्सीजन का टंगस्टन पर अधिशोषित होना ।
2. हाइड्रोजन का निकल पर अधिशोषित होना ।




प्रश्न - अधिशोषण व अवशोषण में अंतर लिखिए ।
उत्तर -


प्रश्न - भौतिक एवं रासायनिक अधिशोषण में अंतर लिखिए ।
उत्तर -




प्रश्न - किसी ठोस पर गैस के अधिशोषण को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं ? उनके नाम लिखिए ।
                                      अथवा
ठोसों द्वारा गैसों के अधिशोषण को प्रभावित करने वाले कारक लिखिए ।
उत्तर - किसी ठोस या गैस के अधिशोषण को प्रभावित करने वाले कारक निम्न है -
1. गैस की प्रकृति

2. अधिशोषण का पृष्ठीय क्षेत्रफल

3.  दाब

4.  ताप

5. अधिशोषण की सक्रियता




प्रश्न  -  अधिशोषण समतापी वक्र क्या है ?  फ्रेंडलिक अधिशोषण समतापी वक्र का वर्णन कीजिए ।
उत्तर - अधिशोषण समतापी  -  अधिशोषक द्वारा अधिशोषित गैस की मात्रा में स्थिर ताप पर दाब के साथ परिवर्तन एक वक्र के माध्यम से व्यक्त किया जा सकता है , जिसे अधिशोषण समतापी वक्र कहते हैं ।
अधिशोषण समतापी वक्र दो प्रकार के होते हैं -
1. फ्रेंडलिक समतापी वक्र

2. लैंगुमर समतापी वक्र


1. फ्रेंडलिक समतापी वक्र  - फ्रेंडलिक ने ठोस अधिशोषक के इकाई द्रव्यमान द्वारा एक निश्चित ताप पर अधिशोषित गैस की मात्रा तथा दाब के मध्य एक प्रयोग पर आधारित संबंध दिया , जिसे फ्रेंडलिक समतापी वक्र कहते हैं ।
इस संबंध को निम्न समीकरण द्वारा व्यक्त किया जा सकता है -

               x/m  =  k.p1/n   ---------(1)

जहां x = अधिशोषक के m द्रव्यमान द्वारा p दाब पर अधिशोषित गैस का द्रव्यमान है ।
K एवं n स्थिरांक हैं , जो किसी निश्चित आप पर अधिशोषक एवं गैस की प्रकृति पर निर्भर करते हैं ।

समीकरण (1) का लघुगुणक लेने पर -

               log x/m = log k + 1/n log p

जहाँ -
x        =  अधिशोषित गैस की मात्रा
m       =  अधिशोषक गैस का द्रव्यमान
p        = दाब (pressure)
k , n   = स्थिरांक


                               PART - 3



प्रश्न - अधिशोषक के सक्रियण से आप क्या समझते हैं यह कैसे प्राप्त किया जाता है ?

उत्तर - अधिशोषक - अधिशोषक के सक्रियण का अर्थ है- अधिशोषक की अधिशोषण क्षमता । अतः अधिशोषण की सक्रियता को बढ़ाने के लिए निम्न क्रियाकलाप किए जाते हैं -

1. धात्विक अधिशोषक को यांत्रिक या रासायनिक विधि द्वारा खुरदुरा करके ।

2. अधिशोषक को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ कर ।

3.कुछ अधिशोषकों की अधिशोषण क्षमता उच्च ताप पर गर्म करके बढ़ाई जा सकती है ।




प्रश्न - अधिशोषण के अनुप्रयोग लिखिए ।
उत्तर - हमारे दैनिक जीवन में अधिशोषण के अनेक उपयोग हैं उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं -
1. गैस मास्क में - विषैली गैस जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, मेथेन आदि को दूर करने के लिए गैस मास्क में सक्रिय चारकोल प्रयुक्त होता है जो वायुमंडल में उपस्थित विषैली गैसों को अधिशोषित कर लेते हैं।

2. शक्कर के निर्माण में - शक्कर के निर्माण में जंतु चारकोल का प्रयोग इसे रंगहीन करने में करते हैं ।

3. नमी दूर करने में - सिलिका जेल का उपयोग नमी को दूर करने में किया जाता है।

4. उत्प्रेरण में - विषमांग उत्प्रेरक प्रक्रिया में अधिशोषण प्रक्रम की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

5. क्रोमेटोग्राफी में - क्रोमैटोग्राफी द्वारा यौगिकों का शुद्धिकरण भी अधिशोषण सिद्धांत पर आधारित है।





प्रश्न - कौन सी अक्रिय गैस चारकोल की सतह पर सबसे कम मात्रा में और कौन सी गैस सबसे ज्यादा मात्रा में अधिशोषित होगी और क्यों ?
उत्तर - 1.हीलियम(He) अपने कम आणविक द्रव्यमान एवं अणुओं के बीच न्यूनतम वांडर वाल्स बल के कारण चारकोल की सतह पर सबसे कम मात्रा में अधिशोषित होगी।

2. जीनोन (Xe) अपने अधिक आणविक द्रव्यमान एवं अणुओं के बीच अधिकतम वांडरवाल्स बल के कारण चारकोल की सतह पर सबसे ज्यादा अधिशोषित होगी।



                                PART - 4


प्रश्न - उत्प्रेरक किसे कहते हैं  ? यह कितने प्रकार के होते हैं । उदाहरण देकर समझाइए ।
उत्तर - उत्प्रेरक - वह पदार्थ जो अपनी उपस्थिति मात्र से किसी रासायनिक क्रिया केेेेेेे वेग  को घटा या बढ़ा देता है और स्वयं क्रिया केे अंत में अपरिवर्तित रहता है, उत्प्रेरक कहलाता है तथा इस प्रकार की क्रिया उत्प्रेरण कहलाती है ।

उदाहरण - अमोनिया निर्माण की हैबर विधि में प्लेटिनम(Pt) उत्प्रेरक का कार्य करता है।


उत्प्रेरक का वर्गीकरण - उत्प्रेरक  एवं अभिकारक पदार्थों की भौतिक अवस्था के आधार पर उत्प्रेरण की क्रिया को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है - 

1.समांगी उत्प्रेरण - वे रासायनिक अभिक्रियाएं जिनमें क्रिया कारक पदार्थ और उत्प्रेरक एक ही अवस्था में हो, समांगी उत्प्रेरण अभिक्रियाएं कहलाती हैं।

उदाहरण -1. सीस कक्ष विधि द्वारा सल्फ्यूरिक अम्ल के निर्माण में प्रयुक्त उत्प्रेरक एवं क्रिया कारक सभी गैसीय अवस्था में होते हैं-


SO2  +  O2     ---- -------------->       SO3


2. विषमांगी उत्प्रेरण - जब क्रिया कारक पदार्थ और उत्प्रेरक की अवस्थाएं अलग-अलग हों तो ऐसे उत्प्रेरण को विषमांगी उत्प्रेरण कहते हैं।
उदाहरण 1. अमोनिया निर्माण की हैबर विधि में प्रयुक्त आयरन(Fe) चूर्ण ठोस तथा क्रिया कारक गैसीय अवस्था में है।


N2  +  3H2  ------------------->  2NH3


उत्प्रेरक के प्रकार - विशिष्टता के आधार पर उत्प्रेरक चार प्रकार के होते हैं -

1. धनात्मक उत्प्रेरक 

2. ऋणात्मक उत्प्रेरक 

3. स्वउत्प्रेरक 

4. प्रेरित उत्प्रेरक


1. धनात्मक उत्प्रेरक - जब उत्प्रेरक रासायनिक अभिक्रिया के वेग को बढ़ाता है तो इसे धनात्मक उत्प्रेरक तथा इस प्रक्रम को धनात्मक उत्प्रेरण कहते हैं।

2KClO3       ------------------>    2KCl  + O2

यहां मैग्नीज डाई ऑक्साइड धनात्मक उत्प्रेरक का कार्य करता है

2.ऋणात्मक उत्प्रेरक - जब कोई उत्प्रेरक रासायनिक अभिक्रिया की गति को कम कर देता है तो उसे ऋणात्मक उत्प्रेरक  तथा इस घटना को ऋणात्मक उत्प्रेरण  कहते हैं।


H2O2         ----------------->       H2O  + O2

   
यहां फास्फोरिक अम्ल ऋणात्मक उत्प्रेरक  का कार्य करता है।


3. स्व उत्प्रेरक - जब अभिक्रिया से उत्पन्न पदार्थ उत्प्रेरक का कार्य करने लगता है तो उसे स्व उत्प्रेरक कहते हैं तथा इस घटना को स्वउत्प्रेरण कहते हैं।

उदाहरण - अम्लीय पोटेशियम परमैग्नेट(KMnO4)की ऑक्जेलिक अम्ल(COOH) से होने वाली अभिक्रिया में पोटेशियम परमैग्नट का रंग शुरू में धीरे-धीरे गायब होता है परंतु बाद में पोटेशियम परमैग्नेट का रंग शीघ्रता से गायब होने लगता है क्योंकि अभिक्रिया में बना मैंगनीज सल्फेट(MnSO4) इस अभिक्रिया को उत्प्रेरित करने लगता है l
उदाहरण (1)
CH3COOH + H2O ----> CH3COOH + C2H5OH

उदाहरण - (2)
5(COOH)2 + 2KMnO4 + 3H2SO4

----->  K2SO4  +  2MnSO4  +  8H2O

4. प्रेरित उत्प्रेरक - जब कोई एक रासायनिक अभिक्रिया किसी दूसरी रासायनिक अभिक्रिया के लिए उत्प्रेरक का कार्य करती है तो पहली अभिक्रिया प्रेरित उत्प्रेरक कहलाती है।

उदाहरण - सोडियम सल्फाइट को हवा में रखने पर ऑक्सीकरण हो जाता है परंतु सोडियम आर्सेनाइट वायु में ऑक्सीकृत नहीं होता है ।
यदि सोडियम सल्फाइट और सोडियम आर्सेनाइट को मिलाकर हवा में रखें तो दोनों का ऑक्सीकरण हो जाता है । यहां सोडियम सल्फाइट प्रेरित उत्प्रेरक का कार्य करता है ।




                                    PART - 5


प्रश्न - उत्प्रेरकों के प्रमुख गुण लिखिए ।
उत्तर - उत्प्रेरकों के प्रमुख गुण -
1. उत्प्रेरक की अल्प मात्रा ही रासायनिक क्रिया में वेग को प्रभावित करने में पर्याप्त होती है।

2. उत्प्रेरक किसी रासायनिक क्रिया को प्रारंभ नहीं करता है , केवल उसके वेग को घटा या बढ़ा सकता है।

3. उत्प्रेरक साम्यावस्था को नहीं बदलता है , अग्र एवं पश्च  क्रियाओं को समान रूप से उत्प्रेरित करता है।

4. उत्प्रेरक का कार्य विशिष्ट होता है अर्थात एक ही उत्प्रेरक सभी रासायनिक क्रियाओं को उत्प्रेरित नहीं कर सकता है ।

6. उत्प्रेरक उत्पाद की प्रकृति को नहीं बदल सकता है ।




प्रश्न -  उत्प्रेरक वर्धक एवं उत्प्रेरक विष से आप क्या समझते हो ? उदाहरण सहित लिखिए ।
उत्तर - उत्प्रेरक वर्धक - वे पदार्थ जो स्वयं उत्प्रेरक का कार्य नहीं करते हैं , किंतु जिनकी उपस्थिति और उत्प्रेरकों की शक्ति बढ़ा देती है , उत्प्रेरक वर्धक या उत्प्रेरक उत्साहक कहलाते हैं ।
जैसे - अमोनिया निर्माण की हैबर विधि में मालिब्डेनम(Mo) , आयरन(Fe) उत्प्रेरक की शक्ति को बढ़ा देता है ।


N2 + 3H2 -----------------------> 2NH3


उत्प्रेरक विष - वे पदार्थ जो उत्प्रेरक की उत्प्रेरण शक्ति को नष्ट या कम कर देते हैं , उत्प्रेरक विष कहलाते हैं ।
जैसे - सल्फ्यूरिक अम्ल निर्माण की संपर्क विधि में आर्सेनिक ऑक्साइड(As2O3) की उपस्थिति प्लेटिनीकृत एस्बेस्टस की उत्प्रेरक क्षमता नष्ट कर देती है।


SO2 + O2 --------------------> SO3



प्रश्न - उत्प्रेरण के प्रक्रम में  विअधिशोषण की क्या भूमिका है ?
उत्तर - ठोस उत्प्रेरक द्वारा गैसीय अभिकारकों को अधिशोषित करने के बाद मध्य अवस्था ग्रहण करता है , इसके बाद विअधिशोषण होता है , जिसमें अणु अलग-अलग होते हैं । अतः ठोस उत्प्रेरकों के पृष्ठ बार-बार उपलब्ध होते रहते हैं ।



प्रश्न - विषमांगी उत्प्रेरण में अधिशोषण की क्या भूमिका है ?
उत्तर - सामान्यतः विषमांगी उत्प्रेरण में क्रियाकारक गैसीय होते हैं , जबकि उत्प्रेरक ठोस होते हैं । भौतिक अथवा रासायनिक अधिशोषण के द्वारा क्रियाकारकों के अणु ठोस उत्प्रेरक की सतह पर अधिशोषित हो जाते हैं , परिणामस्वरूप सतह पर क्रियाकारक के अणुओं की सांद्रता बढ़ जाती है , अतः अभिक्रिया का वेग भी बढ़ जाता है अर्थात अधिशोषण से अभिक्रिया के वेग में वृद्धि होती है ।


प्रश्न - आकृति वरणात्मक उत्तप्रेरण क्या है।
उत्तर - आकृति वरणात्मक उत्प्रेरण की क्रिया अति विशिष्ट होती है । यह अति विशिष्ट प्रकृति उत्प्रेरक की रंध्र या छिद्र युक्त संरचना तथा अभिकारक एवं उत्पाद के अणुओं के आकार पर निर्भर करती है । इस प्रकार के कुछ उत्प्रेरकों को आकृति चयन करने वाला उत्प्रेरक का जाता है ।
जैसे - जिओलाइट


                                 PART - 6

प्रश्न -  ठोस उत्प्रेरकों की प्रमुख विशेषताएं लिखिए ।
उत्तर -  ठोस उत्प्रेरकों की प्रमुख विशेषताएं निम्न है -
1.सक्रियता
2.वरण क्षमता
3.आकृति चयन

सक्रियता - किसी उत्प्रेरक द्वारा अभिक्रिया की दर को बढ़ाने की क्षमता उसकी सक्रियता कहलाती है।

वरण क्षमता - किसी उत्प्रेरक का किसी रासायनिक अभिक्रिया में एक निश्चित उत्पाद बनाने की क्षमता वरण क्षमता कहलाती है।

उदाहरण - प्लेटिनम उत्प्रेरक नॉर्मल हेप्टेन (C7H16) को केवल टालूईन  में परिवर्तित करता है जो इसकी वरण क्षमता है।

आकृति चयन - कुछ उत्प्रेरक एक निश्चित आकृति वाले अभिकारक के लिए उत्प्रेरक का कार्य करते हैं यह गुण आकृति चयन कहलाते हैं । ऐसे उत्प्रेरक अपने अनुकूल संरचना वाले अभिकारकों के साथ जुड़कर अभिक्रिया को उत्प्रेरित करते हैं, किंतु भिन्न आकार वाले अभिकारकों के लिए उत्प्रेरक का कार्य नहीं करते हैं।
उदाहरण - जिओलाइट उत्प्रेरक छिद्रयुक्त होता है इसलिए जो अभिकारक इसके छिद्र में प्रवेश कर जाते हैं उनके लिए यह उत्प्रेरक का कार्य करता है ।



प्रश्न - उत्प्रेरण के प्रमुख सिद्धांतों के नाम लिखिए।
उत्तर - उत्प्रेरण के प्रमुख सिद्धांत निम्न है -
1. माध्यमिक योगिक सिद्धांत
2. अधिशोषण सिद्धांत
3. संपर्क उत्प्रेरक का आधुनिक सिद्धांत।

1. माध्यमिक योगिक सिद्धांत - इस सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक अभिकारक के साथ उत्प्रेरक संयुक्त होकर पहले माध्यमिक योगिक बनाता है और बाद में उत्पाद बनाकर स्वयं पृथक हो जाता है।
माना एक अभिक्रिया निम्न प्रकार हो रही है -

                 A + C -----------> AC

                AC  +  B  ------> AB  +  C(उत्प्रेरक)

2.अधिशोषण सिद्धांत - इस सिद्धांत के अनुसार पहले अभिकारक उत्प्रेरक की सतह पर सांद्रता बढ़ा देता है और फिर उत्पाद में परिवर्तित हो जाता है।

3. संपर्क उत्प्रेरक का आधुनिक सिद्धांत - पहले अभिकारक उत्प्रेरक की सतह पर अधिशोषित हो जाते हैं जिससे सतह पर इनकी सांद्रता बढ़ जाती है फलस्वरूप अभिक्रिया की दर भी बढ़ जाती है । उत्प्रेरक की सतह पर मुक्त संयोजकता उपस्थित रहती हैं जिससे यह अभिकारक के साथ अस्थाई रूप से बंध बना लेता है अर्थात अभिकारक को अधिशोषित कर लेता है । ऐसा होने से अभिकारक कुछ विकृत तथा तनाव युक्त हो जाता है इसे मध्यवर्ती सक्रिय संकुल कहते हैं ऊर्जा अधिक होने के कारण यह विघटित हो जाता है तथा उत्पाद में परिवर्तित हो जाता है एवं उत्प्रेरक इससे प्रथक हो जाता है जो आगे इसी प्रकार से क्रिया करता है ।
यह सिद्धांत माध्यमिक योगिक सिद्धांत एवं अधिशोषण सिद्धांत का संयुक्त रूप है।




प्रश्न - एंजाइम किसे कहते हैं उदाहरण सहित लिखिए । एवं इसकी क्रिया विधि समझाइए ।
उत्तर - एंजाइम - एंजाइम अणु भार वाले नाइट्रोजन युक्त जटिल कार्बनिक योगिक होते हैं जो जीवित कोशिकाओं में उत्पन्न होते हैं यह मुख्य रूप से जैव रासायनिक अभिक्रिया को उत्प्रेरित करते हैं अतः जैव उत्प्रेरक कहलाते हैं ।

उदाहरण -
1. टायलिन एंजाइम मनुष्य की लार में पाया जाता है जो स्टार्च को ग्लूकोज में बदल देता है।

2. यीस्ट में उपस्थित इनवर्टेज एवं जाइमेज एंजाइम गन्ने की शक्कर को एथिल एल्कोहल में बदल देते हैं ।


एंजाइम उत्प्रेरक की क्रिया विधि - एंजाइम उत्प्रेरक की क्रिया विधि को ताला चाबी के सिद्धांत पर समझाया गया है ।इस सिद्धांत के अनुसार -
अभिकारक व एंजाइम के मध्य वही संबंध होता है जो ताले व चावी के मध्य होता है पहले अभिकारक पदार्थों के साथ जोड़कर मध्यवर्ती सक्रिय संकुल बनाता है इस संकुल में अभिकारक पदार्थ निकट संपर्क में रहते हैं जिससे यह संयुक्त होकर उत्पाद बना लेते हैं।

प्रश्न - सामान्य उत्प्रेरक एवं एंजाइम में अंतर लिखिए।


                               PART - 7


प्रश्न - विलयन किसे कहते हैं । यह कितने प्रकार के होते हैं ।
उत्तर - विलयन - दो या दो से अधिक पदार्थों के समांगी या विषमांगी मिश्रण को विलयन कहते हैं

प्रकार -  विलेय कणों के आधार पर बिलयन को तीन प्रकारों में बांटा गया है -
1.वास्तविक विलयन (True solution)
2.कोलॉयडी विलयन(Colloidal)
3.निलंबन विलयन (Suspension)

1.वास्तविक विलयन (True solution)- वह समांगी विलयन जिसमें विलायक व विलेय के कणों के आकार समान होते हैं वास्तविक बिलयन कहलाता है ।

2.कोलॉयडी विलयन (Colloidal solution)- वह विषमांगी विलयन जिनका आकार 1 nm से 100 nm के मध्य होता है कोलाइडी विलयन कहलाता है।

3.निलंबन विलयन (Suspension solution)- वह विषमांगी विलयन जिसमें विलेय के कणों का आकार 100nm से अधिक होता है निलंबन विलयन कहलाता है।



प्रश्न - कोलाइडी विलयन को किस आधार पर वर्गीकृत किया गया है।
उत्तर - कोलाइडी विलयन को अलग-अलग मापदंडों के आधार पर वर्गीकृत किया गया है -
1. परीक्षिप्त प्रावस्था परिक्षेपण माध्यम की भौतिक अवस्था के आधार पर

2. परिक्षेपण माध्यम की प्रकृति के आधार पर

3.परीक्षिप्त प्रावस्था तथा परिक्षेपण माध्यम के बीच अंतः क्रिया की प्रकृति के आधार पर

4. परीक्षिप्त प्रावस्था के कणों के प्रकार पर आधारित वर्गीकरण



                               PART - 8
 
प्रश्न - परीक्षित प्रावस्था एवं परिक्षेपण माध्यम की भौतिक अवस्था के आधार पर कोलाइडी विलियन कितने प्रकार के होते हैं ।

                                      अथवा

सॉल, जेल एवं पायस से आप क्या समझते हो ?

उत्तर - परीक्षित प्रावस्था एवं परिक्षेपण माध्यम की भौतिक अवस्था के आधार पर कोलाइडी विलियन निम्न तीन प्रकार के होते हैं -

1.सॉल (Sol) - वह कोलाइडी विलियन जिसमें परिक्षेपण माध्यम द्रव एवं परिक्षिप्त प्रावस्था ठोस होती है, सॉल कहलाता है ।
उदाहरण - कॉपर सॉल, गोल्ड सॉल,सिल्वर सॉल, जिंक सॉल, गोंद व स्टार्च का जलीय विलयन आदि ।

2.जेल (Jel) - वह कोलाइडी विलयन जिसमें परिक्षेपण माध्यम ठोस एवं परिक्षिप्त प्रावस्था द्रव होती है , जेल कहलाती है ।
उदाहरण - आइसक्रीम ,पनीर , सॉस आदि ।

3.पायस (इमल्शन) - वह कोलाइडी विलयन जिसमें परिक्षेपण माध्यम एवं परिक्षिप्त प्रावस्था दोनों द्रव होती हैं, पायस कहलाता हैं ।
उदाहरण - दूध एक पायस है

पायस के प्रकार - पायस निम्न दो प्रकार का होता है -
1.जल में तेल
2.तेल में जल


प्रश्न - परीक्षिप्त अवस्था एवं परिक्षेपण माध्यम की अंतः क्रिया के आधार पर कोलाइडी विलयन को कितने प्रकारों में बांटा गया है ?

                                   अथवा

द्रव स्नेही एवं द्रव विरोधी कोलॉइड किसे कहते हैं,उदाहरण सहित लिखिए।

उत्तर - परीक्षिप्त अवस्था एवं परिक्षेपण माध्यम की अंतः क्रिया के आधार पर कोलाइडी विलयन को निम्न दो प्रकारों में बांटा गया है -

1.द्रव स्नेही कोलाइड - वे कोलाइड जो परिक्षेपण माध्यम के संपर्क में आते ही शीघ्रता से कोलाइडी विलयन बनाते हैं ,द्रव स्नेही कोलाइड कहलाते हैं । यह परिक्षेपण माध्यम के प्रति अधिक आकर्षण रखते हैं इसलिए इनके द्वारा बना विलयन स्थाई होता है तथा विद्युत अपघट्य द्वारा यह अवक्षेपित या स्कंदित नहीं होते हैं ।
जैसे - प्रोटीन, स्टार्च, ग्लिसरीन ,गोंद आदि ।

2.द्रव विरोधी कोलाइड - वे  कोलाइड जो परिक्षेपण माध्यम के संपर्क में आते ही शीघ्रता से कोलाइडी विलयन नहीं बनाते हैं ,द्रव विरोधी कोलाइड कहलाते हैं । यह परिक्षेपण माध्यम के प्रति कम आकर्षण रखते हैं इसलिए इनके द्वारा बना विलयन कम स्थाई होता है तथा विद्युत अपघट्य द्वारा यह सरलता से अवक्षेपित या स्कंदित हो जाते हैं ।
जैसे - Pb, Ag, Au, Zn, As2S3, Fe(OH)3 आदि ।



प्रश्न - द्रव स्नेही एवं द्रव विरोधी कोलॉइड की विशेषताएं लिखिए।
उत्तर - [ A ] . द्रव स्नेही कोलॉइड की विशेषताएं -
1. इनकी प्रकृति उत्क्रमणीय होती है ।

2. यह अधिक स्थाई होते हैं ।

3. वैद्युत अपघट्य मिलाने पर सरलता से स्कंदित नहीं होते हैं ।

4. यह धनावेशित , ऋणावेशित एवं उदासीन  होते हैं ।

5. यह परिक्षेपण माध्यम के प्रति अधिक आकर्षण रखते हैं ।

6. यह परिक्षेपण माध्यम के संपर्क में आने पर सरलता से कोलाइडी विलयन बनाते हैं ।

7. इनकी श्यानता परिक्षेपण माध्यम से सदैव उच्च होती है ।

8. इनका पृष्ठ तनाव परिक्षेपण माध्यम के कम होता है ।

9. यह टिंडल प्रभाव कम प्रदर्शित करते हैं ।

10. विद्युत कण संचलन किसी भी दिशा में हो सकता है ।

11. यह अवक्षेपण के बाद सरलता से कोलाइडी विलयन बनाते हैं ।



[ B ] . द्रव विरोधी कोलॉइड की विशेषताएं -

1. इनकी प्रकृति अनुत्क्रमणीय होती है ।

2. यह कम स्थाई होते हैं

3. वैद्युत अपघट्य मिलाने पर सरलता से स्कंदित हो जाते हैं ।

4. यह धनावेशित एवं ऋणावेशित हो सकते हैं ।

5. यह परिक्षेपण माध्यम के प्रति कम आकर्षण रखते हैं ।

6. यह परिक्षेपण माध्यम के संपर्क में आने पर सरलता से कोलाइडी विलयन नहीं बनाते हैं ।

7. इनकी श्यानता परिक्षेपण माध्यम के बराबर होती है ।

8. इनका पृष्ठ तनाव परिक्षेपण माध्यम के बराबर होता है ।

9. यह टिंडल प्रभाव अधिक एवं स्पष्ट प्रदर्शित करते हैं ।

10. विद्युत कण संचलन केवल एक ही दिशा में होता है ।

11. यह अवक्षेपण के बाद सरलता से कोलाइडी विलयन नहीं बनाते हैं ।



प्रश्न - द्रव स्नेही एवं द्रव विरोधी कोलाइडी विलयन में अंतर लिखिए ।


                              

                                    PART - 9


प्रश्न - परिक्षेपण माध्यम की प्रकृति के आधार पर कोलाइडी विलयन को कैसे वर्गीकृत किया गया है।

उत्तर - परिक्षेपण माध्यम की प्रकृति के आधार पर कोलाइडी विलयन को निम्न प्रकार में वर्गीकृत कर सकते हैं -


प्रश्न - परीक्षिप्त प्रावस्था के कणों के आकार के आधार पर कोलाइडी विलयन  को कितने प्रकारों में बांटा गया है ।
उत्तर - परीक्षिप्त प्रावस्था के कणों के आकार के आधार पर कोलाइडी विलयन  को तीन प्रकारों में बांटा गया है - 

1. बहुआणविक कोलाइड (Multimolecular Colloid)


2. वृहत आण्विक कोलाइड(Macromolecular Colloid)


3. संगुणित कोलॉइड (Associated Colloid)


1. बहुआणविक कोलाइड - इन विलयनों में कोलॉइडी कण कई परमाणुओं एवं अणुओं के झुंड या समूह के रूप में रहते हैं, जिनका व्यास 1nm से कम होता है । इन समूहों में अणु या परमाणु परस्पर वांडरवाल्स  बल द्वारा बंधे रहते हैं।


उदाहरण - गोल्ड के कोलाइडी विलयन में भिन्न-भिन्न आकार के कई परमाणुओं के समूह  कोलॉइडी कण के रूप में होते हैं ।

इसी तरह गंधक के कोलाइडी कणों में हजारों S8 के अणु होते हैं। 


2.वृहत आण्विक कोलाइड - इन कोलाइडों में कोलाइडी कणों के रूप में बड़े-बड़े वृहत अणु होते हैं , जिनमें कई परमाणु विद्यमान होते हैं । बड़ा आकार होने के कारण ये अणु ही कोलाइडी कण के परिमाण के हो जाते हैं और विलायकों में वितरित हो जाते हैं ,अधिकांश द्रव स्नेही कोलाइड इसी श्रेणी में आते हैं । यह कोलाइड अधिक स्थाई होते हैं और अनेक प्रकार से वास्तविक विलयनों से समानता रखते हैं 

उदाहरण -  प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले वृहत अणु जैसे स्टार्च, सैलूलोज ,प्रोटीन एवं एंजाइम तथा मनुष्य द्वारा निर्मित वृहत अणु जैसे- पॉलिथीन, नायलॉन, संश्लेषित रबर आदि । 


3.संगुणित कोलॉइड - वे योगिक जो काम सांद्रता पर सामान्य प्रबल विद्युत अपघट्य की भांति व्यवहार करते हैं ,किंतु उच्च सांद्रता पर अनेक कणों के आपस में जुड़ने के कारण कोलाइडी अवस्था के गुण प्रदर्शित करते हैं ऐसे कणों के समूह को मिसेल कहते हैं तथा ऐसे पदार्थों को संगुणित कोलॉइड कहते हैं ।

जैसे - साबुन, डिटर्जेन्ट आदि ।


प्रश्न - क्रिस्टलाभ एवं कोलॉइड किसे कहते हैं ?
उत्तर - थॉमस ग्रहम को कोलाइडी रसायन का पितामह कहा जाता है इन्होंने सन 1861 में विलेयशील  पदार्थों को  वनस्पति झिल्ली में से  विसरित होने के आधार पर  दो भागों में बांटा -

1.क्रिस्टलाभ (Crystalloid)

2.कोलॉइड (Colloid)


1.क्रिस्टलाभ - ऐसी पदार्थ जो बिलयन अवस्था में जंतु झिल्ली ,वनस्पति झिल्ली या चर्म पत्र से शीघ्र वितरित हो जाते हैं क्रिस्टलाभ कहते हैं, यह पदार्थ क्रिस्टलीय प्रकृति के होते हैं इसलिए इन्हें क्रिस्टलाभ कहा गया।

जैसे - ग्लूकोज, लवण (NaCl), अम्ल , क्षार, कॉपर सल्फेट , फ्रैक्टोज, सुक्रोज, यूरिया आदि ।



2.कोलॉइड - ऐसे पदार्थ जो बिलयन अवस्था में जंतु झिल्ली, वनस्पति झिल्ली या चर्म पत्र से विसरित नहीं होते कोलाइड कहलाते हैं । कोलाइडी विलयन को सॉल भी कहते हैं ।

जैसे - गोंद, जिलेटिन, स्टार्च, प्रोटीन ,रक्त ,दूध ,मक्खन, आइसक्रीम ,एल्बुमिन आदि ।


नोट - आधुनिक मत के अनुसार कोलाइड कोई पदार्थ नहीं है ,बल्कि कोलाइड पदार्थ की एक अवस्था है । प्रत्येक पदार्थ को उपयुक्त विधियों द्वारा कोलाइडी अवस्था में परिवर्तित किया जा सकता है। 

जैसे - 1. NaCl जल में क्रिस्टलाभ है , जबकि बेंजीन में कोलाइड की भांति व्यवहार करता है ।


2.साबुन जल में कोलाइड है , जबकि एल्कोहल में क्रिस्टलाभ की भांति व्यवहार दर्शाता है।



                                PART - 10


प्रश्न - मिसेल किसे कहते हैं उदाहरण दीजिए ।
उत्तर - मिसेल(Micelles) - वे यौगिक जो कम सांद्रता पर सामान्य प्रबल विद्युत अपघट्य की भांति व्यवहार करते हैं , किंतु उच्च सांद्रता पर अनेक कणों के आपस में जुड़ने के कारण कोलाइडी अवस्था के गुण प्रदर्शित करते हैं, ऐसे कणों के समूह को मिसेल कहते हैं । जैसे - साबुन , डिटर्जेन्ट आदि ।

मिसेल एक निश्चित तापक्रम के ऊपर ही बनते हैं और इस तापक्रम को क्राफ्ट तापक्रम कहते हैं जिसे Tk से प्रदर्शित करते हैं ।
इसी प्रकार यह निश्चित सांद्रण के ऊपर बनते हैं , इस सांद्रण को क्रांतिक मिसेल सांद्रण (CMC) कहते हैं ।



प्रश्न - साबुन की प्रक्षालन क्रिया (क्रिया विधि) समझाइए ।
उत्तर - साबुन की प्रक्षालन क्रिया - साबुन की कार्यविधि उसके मिसेल के समान कार्य करने की प्रवृत्ति पर आधारित है । साबुन में मैले कपड़े को साफ करने की क्षमता है ,सिर्फ जल यह कार्य नहीं कर सकता । हमारे द्वारा पहने गए कपड़े के मैले हो जाने का कारण यह है कि हमारे शरीर से जो पसीना निकलता है उसके कारण कपड़ा तेल युक्त हो जाता है वायुमंडल से धूल के कण तेल से चिपक जाते हैं और हमारा कपड़ा मेला हो जाता है । कपड़े को साफ करने के लिए उसे पानी में डूबा कर उसमें साबुन लगाते हैं ।

साबुन उच्च वसा अम्लों के सोडियम या पोटेशियम लवण होते हैं जब साबुन को जल के संपर्क में लाया जाता है तब यह कार्बोऑक्सिलेट आयन एवं धनायन में वियोजित हो जाता है । कार्बोऑक्सिलेट आयन बाला भाग सिरा(द्रव स्नेही भाग) एवं एल्किल भाग(R)  पूंछ(द्रव विरोधी भाग) होता है ,द्रव विरोधी भाग वसा या तेल के प्रति तथा द्रव स्नेही भाग जल के प्रति अधिक आकर्षण रखता है । जब कार्बोऑक्सिलेट आयन मैल के संपर्क में आता है तब यह द्रव विरोधी भाग द्वारा वसा या तेल के अणु से जुड़ जाता है ,और द्रव स्नेही भाग द्वारा जल से आकर्षित होकर बाहर आ जाता है । इससे वसा या तेल में उपस्थित धूल के कण भी बाहर आ जाते हैं इस प्रकार साबुन द्वारा मैल साफ हो जाता है ।
चित्र -




प्रश्न - द्रव विरोधी कोलाइडी तंत्र बनाने की विधियां लिखिए ।
उत्तर - द्रव विरोधी कोलाइडी तंत्र बनाने की विधियां - ऐसे पदार्थ जो परिक्षेपण माध्यम के संपर्क में आने पर या हिलाने से कोलाइडी विलयन नहीं बनाते , द्रव विरोधी कोलाइड कहलाते हैं , इन पदार्थों के कोलाइडी विलयन बनाने के लिए विशेष विधियां प्रयुक्त की जाती हैं , जो निम्न है -

[1] . परिक्षेपण विधियां - इस विधि में बड़े कणों को कोलाइडी कणों के आकार में तोड़ते अथवा परीक्षिप्त करते हैं इस प्रयोजन हेतु निम्न विधियों को प्रयोग में लाया जाता है -

a. विद्युत परिक्षेपण या ब्रेडिंग की आर्क विधि

b. पेप्टिकरण विधि

c. अल्ट्रासोनिक परिक्षेपण विधि

d. यांत्रिक परिक्षेपण विधि

[2] . संघनन विधियां - इन विधियों से कोलाइडी तंत्र प्राप्त करने के लिए इस प्रकार की प्रायोगिक परिस्थितियां उत्पन्न की जाती हैं ताकि कम व्यास वाले अणुओं का संघनन हो सके और कोलॉइड आकार के कण प्राप्त हो जाएं, संघनन के लिए निम्नलिखित रासायनिक और भौतिक विधियां प्रयोग में लाई जाती हैं -

1. रासायनिक विधियां -
a. उभय अपघटन द्वारा
b. ऑक्सीकरण द्वारा
c. अपचयन द्वारा
d. जल अपघटन द्वारा


2. भौतिक विधियां -
a. विलायक परिवर्तन विधि
b. वाष्प संघनन विधि
c. अति शीतलन विधि




प्रश्न - द्रव विरोधी कोलॉयडी विलयन बनाने की ब्रेडिंग की आर्क विधि को समझाइए -
उत्तर - A. ब्रेडिंग की आर्क विधि -
1.इस विधि द्वारा प्लेटिनम ,गोल्ड, सिल्वर, कॉपर आदि धातुओं का कोलाइडी विलयन प्राप्त किया जाता है ।

2. जिस धातु का कोलाइडी विलयन बनाना होता है, उसके दो इलेक्ट्रोड बनाते हैं और इन्हें जल आदि परिक्षेपण माध्यम में डूबा दिया जाता हैं ।

3. इस विधि में  परिक्षेपण माध्यम में डूबे इलेक्ट्रॉडों के बीच, उच्च विद्युत आर्क उत्पन्न किया जाता है , आर्क के उच्च ताप के कारण धातु वाष्प में परिवर्तित हो जाती है इस धातु की वाष्प बर्फ द्वारा ठंडे किए गए परिक्षेपण माध्यम में तुरंत छोटे-छोटे कणों के रूप में संघनित हो जाती है । जो कोलॉयडी आकार के कण बनाती है ।

4. प्राप्त कोलाइडी विलयन को स्थाई बनाए रखने के लिए उसमें थोड़ी मात्रा में पोटेशियम हाइड्रोक्साइड(KOH) मिला देते हैं ।
चित्र -



B. पेप्टिकरण विधि - किसी अवक्षेेप का कोलाइडी अवस्था में बदलना पेप्टिकरण कहलाता है तथा जिस पदार्थ के द्वारा पेप्टिकरण किया जाता है  उसे पेप्टिकारक कहते हैं । इस प्रक्रम मेंं प्रयुक्त विद्युतअपघट्य पेप्टिकारक याा पेप्टिकर्मक कहलाता हैै ।

उदाहरण - FeCl3 विलयन में NH4OH डालने पर फेरिक हाइड्रॉक्साइड का भूरे रंग का अवक्षेप प्राप्त होता है l इस ताजे उत्पन्न हुए फेरिक हाइड्रोक्साइड के अवक्षेप में फेरिक क्लोराइड का बिलयन डालने पर फेरिक हाइड्रोक्साइड का लाल रंग का कोलाइडी विलयन प्राप्त होता है । यहां फेरिक क्लोराइड पेप्टीकारक के रूप में कार्य करता है ।





प्रश्न - कोलाइडी विलियन के शोधन की विधियां लिखिए ।
उत्तर - कोलाइडी विलियन के शोधन की विधियां निम्न हैं -

1. अपोहन - कोलॉयडी बिलयन में से विलेय पदार्थ (क्रिस्टलॉयड) को जंतु या वनस्पति झिल्ली की सहायता से पृथक करने की प्रक्रिया अपोहन या डायलिसिस कहलाती है ।

प्रयोग विधि - जंतु या वनस्पति झिल्ली की एक थैली लेकर उसमें कोलाइडी विलयन भरकर बीकर में लटका देते हैं । जिससे क्रिस्टलॉयड विसरित होकर झिल्ली से बाहर निकल आते हैं ,और कोलाइडी विलयन शुद्ध हो जाता है । यह प्रक्रिया धीमी गति से होती है किंतु गर्म जल का उपयोग करने पर थोड़ी तीव्र हो जाती है ।

2. विधुत अपोहन - विद्युत के प्रवाह से कोलाइडी विलयन के शोधन की क्रिया विधुत अपोहन कहलाती है ।

प्रयोग विधि - एक बड़े पात्र में दो आवेशित प्लेट लगाते हैं । जो कृत्रिम अर्धपारगम्य झिल्ली द्वारा कोलाइडी विलयन से पृथक रहती हैं । इसमें जल के प्रवेश के लिए एक निकास की व्यवस्था भी रहती है ,विद्युत के प्रभाव से क्रिस्टलॉयड कोलाइडी विलयन में से आकर्षित होकर शीघ्रता से बाहर निकल जाते हैं और कोलाइडी विलयन शुद्ध हो जाता है ।
इस विधि में कम समय में कोलाइडी विलयन का शोधन हो जाता है ।

चित्र -



                                  PART - 13


प्रश्न - कोलॉइडी विलयन के गुण लिखिए ।
उत्तर - कोलॉइडी विलयन के गुण - कोलॉइडी विलयन निम्न गुण प्रदर्शित करते हैं - 

1. ब्राउनी गति - इस गति को सबसे पहले अंग्रेज वनस्पतिशास्त्री रॉबर्ट ब्राउन ने सन 1827 में अति सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देखा था इसलिए इसे ब्राउनी गति कहते हैं ।

बीनर के अनुसार - यह गति कोलाइडी कणों के परिक्षेपण माध्यम के अणुओंं के साथ असमान रूप से टकराने से उत्पन्न होती है ।     

                                     अर्थात 

कोलाइडी कणों की निरंतर और तीव्र अनियमित टेढ़ी-मेढ़ी गति ब्राउनी गति कहलाती है ।



उदाहरण - 1. ब्राउनी गति के कारण ,रोशनदान से आते हुए प्रकाश के मार्ग में धूल के कण तैरते हुए दिखाई देते हैं ।


2. जल में थोड़ा सा लाइकोपोडियम पाउडर डालने पर उसके कारण इधर-उधर घूमते हुए दिखाई देते हैं ।



2. टिंडल प्रभाव - जब तीव्र प्रकाश की किरण पुंज किसी लेंस द्वारा कोलाइडी विलयन में केंद्रित की जाती है तब किरण पुंज के मार्ग प्रदीप्त हो जाता है ,और अंधेरे में प्रकाश का मार्ग एक चमकीले शंकु के रूप में दिखाई देता है इस घटना को टिंडल प्रभाव कहते हैं और चमकीले शंकु को टिंडल शंकु कहते हैं ।


                                  अथवा

कोलॉइडी विलयन में प्रकाश की किरण गुजरने से किरण के मार्ग में जो प्रदीप्ति उत्पन्न होती है उसे टिंडल प्रभाव या फैराडे - टिंडल प्रभाव कहते हैं इस प्रभाव को सर्वप्रथम फैराडे ने प्रदर्शित किया था तथा टिंडल ने इसका विस्तारपूर्वक अध्ययन किया था ।


कारण - कोलाइडी कण प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित करके स्वयं दीप्त हो जाते हैं और फिर अवशोषित प्रकाश को छोटी-छोटी तरंगदैध्र्य की किरणों के रूप में प्रकीर्णित होने लगते हैं । प्रकाश का यह प्रकीर्णन प्रकाश के मार्ग के लंबवत होता है । इसलिए प्रकाश के मार्ग को संपूर्ण पर देखने पर यह दिखाई देता है ।


उदाहरण - 1. अंधेरे कमरे में किसी रोशनदान से आते हुए प्रकाश मार्ग में धूल के कारण तैरते हुए दिखाई देते हैं ।

2. टिंडल प्रभाव के कारण ही आकाश व समुद्र नीले रंग के दिखाई देते हैं ।

3. तारों का टिमटिमाना भी इसी प्रभाव के कारण ही है।

4. सिनेमा प्रोजेक्टर में किरण पुंज का प्रोजेक्शन , सिनेमा हॉल में उपस्थित धूल व धुंआ द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण होता है 



3. विद्युत कण संचलन - कोलॉयडी कण विद्युत आवेशित होते हैं । विद्युत क्षेत्र में यह कण विपरीत आवेश वाले इलेक्ट्रोड की ओर गमन करते हैं । अतः - 
विद्युत क्षेत्र के प्रभाव में कोलॉइडी कणों का विपरीत इलेक्ट्रोड की ओर अभिगमन विद्युत कण संचलन कहलाता है ।

जैसे - कुछ कोलाइडी का धन विद्युत आवेशित होते हैं जैसे- फेरिक हाइड्रोक्साइड के कोलाइडी कण और कुछ पदार्थों के कोलाइडी कण ऋण विद्युत आवेशित होते हैं -जैसे धातु सल्फाइडों (As2S3)के कोलाइडी कण ।

उपयोग - विद्युत कण संचलन के सिद्धांत का उपयोग न्यूक्लिक अम्ल से प्रोटीन के पृथक्करण एवं सीवेज वर्ज्य से अपवर्ज्य को प्रथक करने में किया जाता है ।




4. स्कंदन (Coagulation) - जब किसी कोलाइडी विलयन में किसी विद्युत अपघट्य का बिलयन थोड़ी मात्रा में मिलाया जाता है तब कोलाइडी कण विद्युत उदासीन होकर परस्पर संयुक्त हो जाते हैं, और अवक्षेप बना लेते हैं अर्थात कोलाइडी कणों के अवक्षेपण की इस क्रिया को स्कंदन कहते हैं ।

उदाहरण - जब आर्सेनिक सल्फाइड(As2S3) की कोलाइडी विलयन में बेरियम क्लोराइड(BaCl2) बिलयन की कुछ बूंदें डाली जाती हैं तब यह स्कंदित हो जाता है ।


5. रक्षी कोलाइड - यदि किसी द्रव विरोधी कोलाइडी विलयन में द्रव स्नेही कोलाइडी विलयन की कुछ मात्रा मिलाते हैं तो उसका स्थायित्व बढ़ जाता है और इसमें विद्युत अपघट्य मिलाने पर इसका स्कंदन नहीं होता है । इस घटना को रक्षण कहते हैं और इस प्रकार के द्रव स्नेही कोलाइडों को जो द्रव विरोधी कोलाइडी विलयन की स्कंदन से रक्षा करता है, रक्षी कोलाइड कहते हैं।
विभिन्न रक्षी कोलाइडों की रक्षण शक्ति भिन्न-भिन्न होती है। जिगमोंडी ने रक्षण शक्ति को स्वर्ण संख्या या गोल्ड संख्या के रूप में व्यक्त किया।


उदाहरण - जब किसी गोल्ड(Au) साल में थोड़ा-सा जिलेटिन मिलाने के बाद सोडियम क्लोराइड मिलाते हैं तब इसका स्कंदन नहीं होता है । जिलेटिन यहां रक्षी कोलाइड का कार्य करता है ।


                                PART - 14


प्रश्न - निम्न को समझाइए -
1. हार्डी - शुल्जे नियम
2. स्वर्ण संख्या
3. समविभव बिंदु

उत्तर - 1. हार्डी- शुल्जे नियम - विद्युत अपघट्य की स्कंदन शक्ति को व्यक्त करने के लिए हार्डी शुल्जे ने एक नियम का प्रतिपादन किया ।इस नियम के अनुसार -
"किसी विद्युत अपघट्य की स्कंदन शक्ति उनकी संयोजकता पर निर्भर करती है । संयोजकता अधिक होने पर स्कंदन शक्ति अधिक एवं संयोजकता कम होने पर स्कंदन शक्ति कम होती है ।"

उदाहरण 1. सोडियम मैग्नीशियम एवं एलुमिनियम की संयोजकता क्रमशः एक-दो एवं तीन होती हैं तथा इसी क्रम में इनकी स्कंदन क्षमता होती है ।

                    NaCl  <  MgCl2  <  AlCl3

उदाहरण 2. फ्लोरीन, ऑक्सीजन एवं नाइट्रोजन की संयोजकता क्रमशः 1 ,2 एवं 3 होती हैं तथा इसी क्रम में इनकी स्कंदन क्षमता होती है।
          
                        HF  <   H2O  <   NH3


2. स्वर्ण संख्या(Gold Number) - जिग्मोंडी ने आपेक्षिक रक्षण शक्ति ज्ञात करने के लिए एक संख्या निर्धारित की जो स्वर्ण संख्या कहलाती है ।
इसके अनुसार -
यह मिली ग्रामों में रक्षी कोलाइड कि वह मात्रा है जो दिए हुए स्वर्ण कोलाइडी विलयन में 10ml में उपस्थित होने पर उसका 1 ml ,10% NaCl (सोडियम क्लोराइड) बिलयन द्वारा स्कंदन होने से रोकती है । स्वर्ण संख्या अधिक होने पर रक्षण शक्ति कम होती है

उदाहरण - जिलेटिन की स्वर्ण संख्या 0.005 से 0.01mg है अर्थात 10ml गोल्ड सॉल में 0.005 से 0.01 मिलीग्राम जिलेटिन डालने पर उसका 10% NaCl के 1ml द्वारा स्कंदन नहीं होगा ।

नोट - कुछ रक्षी कोलाइडों की स्वर्ण संख्या -
जिलेटिन (0.005 - 0.01mg)
एल्बुमिन (0.1 - 0.2mg)
स्टार्च (2.0 - 25.0mg)
कैसीन (0.01mg)
हीमोग्लोबिन (0.03mg)


3. समविभव बिंदु - कोलाइडी कणों पर धन या ऋण आवेश होता है जब किसी सॉल में कोई विद्युत अपघट्य मिलाया जाता है ,तो सॉल के कणों का आवेश विद्युत अपघट्य से प्राप्त हुए विपरीत आवेश वाले आयनों से धीरे-धीरे नष्ट होने लगता है ,और धीरे-धीरे एक ऐसी अवस्था आ जाती है जब सॉल के कणों पर कोई आवेश नहीं रहता है । इस बिंदु को समविभव बिंदु कहते हैं ।
इस बिंदु पर कोलाइडी विलयन का स्थायित्व कम हो जाता है और कोलाइडी कणों का स्कंदन आसानी से हो जाता है अतः संभव बिंदु परिक्षेपण माध्यम का वह PH या हाइड्रोजन आयन सांद्रण है जिस पर परीक्षिप्त प्रावस्था उदासीन होती है और विद्युत क्षेत्र में अभिगमन नहीं करती है ।

उदाहरण - जब आर्सेनिक सल्फाइड के सॉल में बूंद-बूंद करके तनु सल्फ्यूरिक अम्ल मिलाते हैं तो एक ऐसी अवस्था आती है जब आर्सेनिक सल्फाइड के कोलाइडी कणों का ऋण आवेश अम्ल से प्राप्त हुए हाइड्रोजन आयन के अधिशोषण के कारण उदासीन हो जाता है ।अर्थात विलयन के जिस पीएच पर आर्सेनिक सल्फाइड सॉल आवेशहीन हो जाता है , उसे सॉल का समविभव बिंदु कहते हैं


                               PART - 15

प्रश्न - पायसी कारक किसे कहते हैं ? उदाहरण दीजिए।
उत्तर - पायसीकारक - पायस को स्थायित्व प्रदान करने के लिए इसमें कोई अन्य पदार्थ मिला दिया जाता है ,जिसे पायसीकारक कहते हैं ।
उदाहरण - 1.साबुन और अपमार्जक सबसे अधिक प्रयुक्त होने वाले पायसीकारक हैं ।



नोट - विपायसीकारक - पायस को उसके घटक द्रवों में अपघटित होने के प्रक्रम को विपायसीकरण कहते हैं ।



पायस के अनुप्रयोग -
1. धातु कर्म में झाग प्लवन विधि द्वारा एस्कों का सांद्रण पायसीकरण के सिद्धांत पर आधारित है।

2. छोटी आंत द्वारा वसा का पाचन भी पायसीकरण प्रक्रिया पर निर्भर है।

3. साबुन और अपमार्जक की स्वच्छीकारक क्रिया भी पायसीकारक सिद्धांत पर कार्य करती है।



प्रश्न - दूध में खट्टा पदार्थ में लाने पर दूध फट जाता है, क्यों ?
उत्तर - दूध में खट्टा पदार्थ मिलाने पर दूध फट जाता है क्योंकि दूध में उपस्थित वसा के कोलॉयडी कण आवेशित होते हैं जो खट्टे पदार्थ में उपस्थित विद्युत अपघट्य के प्रभाव से स्कंदित हो जाते हैं ।



प्रश्न - कोट्रेल अवक्षेपक क्या है ?
उत्तर - कोट्रेल अवक्षेपक - कारखानों से निकलने वाले धुएं व धूल से वायुमंडल को बचाने के लिए का कोट्रेल अवक्षेपक कारखानों की चिमनियों में लगाए जाते हैं। यह धुएं में उपस्थित हानिकारक पदार्थों को अवक्षेपित कर देते हैं जिससे हानिरहित धुआं वायुमंडल में पहुंचता है ।कोट्रेल अवक्षेपक विद्युत कण संचलन की क्रिया विधि पर कार्य करता है इसमें दो आवेशित प्लेट लगी होती हैं ।



प्रश्न - आकाश नीला दिखाई देता है क्यों ।
उत्तर - आकाश में धूल तथा जल के कण निलंबित रहते हैं जो नीले रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन करते हैं इससे आकाश नीला दिखाई देता है।




प्रश्न - फिटकरी पानी का शोधन कैसे करती है ?
उत्तर - पानी में अशुद्धियां (कोलाइडी कण) उपस्थित रहते हैं ।फिटकरी मिलाने पर फिटकरी के कण पानी में उपस्थित अशुद्धि के कणों को उदासीन कर देते हैं ,जिससे अशुद्धि अवक्षेपित होकर नीचे बैठ जाती है ।




प्रश्न - दाढ़ी बनाते समय ब्लेड से कट जाने पर होने वाला रक्त स्त्राव फिटकरी लगाने पर बंद हो जाता है क्यों ?
उत्तर - रक्त में ऋण आवेशित कोलाइडी कण होते हैं। जब रक्त स्त्राव वाले स्थान पर फिटकरी(एलम)लगाई जाती है तो फिटकरी में उपस्थित एल्यूमीनियम आयन रक्त के इन ऋण आवेशित कणों को स्कंदित कर रक्त का थक्का बना देता है जिससे रक्त का बहना बंद हो जाता है।




प्रश्न - कटे हुए स्थान पर बहते हुए रक्त को रोकने के लिए फिटकरी या फेरिक क्लोराइड का उपयोग किया जाता है ,क्यों ?
उत्तर - रक्त एक कोलाइडी विलयन है जिसमें उपस्थित कोलॉइडी कण आवेशित होते हैं। कटे हुए स्थान से बहने वाले रक्त पर फिटकरी या फेरिक क्लोराइड लगाने पर इनमें उपस्थित आयन रक्त में उपस्थित कोलाइडी कणों को उदासीन कर अवक्षेपित कर देते हैं । जिससे रक्त का स्कंदन हो जाता है अर्थात थक्का जम जाता है और रक्त का बहना बंद हो जाता है।




प्रश्न - अधिकतर औषधियां कोलाइडी अवस्था में बनाई जाती हैं, क्यों ?
उत्तर - औषधियों के कोलाइडी अवस्था में होने से शरीर द्वारा इनका स्वांगीकरण (अधिशोषण) सरलता से होता है । इसी कारण औषधियां कोलाइडी अवस्था में बनाई जाती हैं।
कोलाइडी अवस्था में बनाई गई कुछ औषधियों के नाम निम्न है -
ऑर्जीनाल, कोलाइडी सल्फर, प्रोटरगाल आदि ।




प्रश्न - समुद्री जल व नदी के जल के मुहाने पर डेल्टा बन जाता है, क्यों ?
उत्तर - समुद्र के जल में विद्युत अपघट्य जैसे- सोडियम क्लोराइड (NaCl), पोटेशियम क्लोराइड(KCl) आदि पाए जाते हैं तथा नदी के जल में उपस्थित धूल एवं अशुद्धि के कण कोलॉयडी कण का कार्य करते हैं । जिस स्थान पर समुद्र व नदी का जल मिलता है उस स्थान पर समुद्री जल में उपस्थित विद्युत अपघट्य ,नदी के जल में उपस्थित अशुद्धि कोलाइडी कणों को अवक्षेपित कर देते हैं। जिससे इनके मिलने के स्थान पर डेल्टा बन जाता है।



प्रश्न - जोरप्शन किसे कहते हैं ।
उत्तर - जोरप्शन - अधिशोषण एवं अवशोषण की मिश्रित घटना जोरोप्शन कहलाती है।
उदाहरण - जब जल के संपर्क में रखे हुए चारकोल में अमोनिया गैस प्रवाहित की जाती है तब चारकोल की सतह का अधिशोषण तथा अमोनिया गैस का सतह व स्थूल द्वारा अवशोषण होता है ।




प्रश्न - कोलाइडी रसायन के अनुप्रयोग लिखिए ।
उत्तर - कोलाइडी रसायन के अनुप्रयोग -
1. जल के मृदु करण में
2. औषधियों के निर्माण में
3. रक्त का थक्का जमाने में
4. धुएं के अवक्षेपण में
5. चर्म शोधन में
6. फोटोग्राफी में
7. साबुन की स्वच्छीकारक क्रिया में ।


प्रश्न - उत्प्रेरकों की क्रिया विधि स्पष्ट करने वाले सिद्धांतों के नाम लिखिए ।
उत्तर - 1. माध्यमिक यौगिक सिद्धांत
           2.आधुनिक सिद्धांत


प्रश्न - दो द्रवविरोधी कोलाइडों के नाम बताइए , जिनमें एक पर धनात्मक तथा दूसरे पर ऋणात्मक आवेश हो ।
उत्तर - 1. धनात्मक - AgI   2. ऋणात्मक - As2S3 ।


प्रश्न - मिसेल क्या है ?
उत्तर - मिसेल - वे कोलाइड जिनके सांद्र विलयन में यौगिक के कण अणुओं के झुंड के रूप में होते हैं , मिसेल कहलाते हैं ।


प्रश्न -  दैनिक जीवन में उपयोग आने वाले कुछ कोलाइडी निकायों के उदाहरण दीजिए ।
उत्तर - दूध , मक्खन , पनीर आदि ।



प्रश्न - साबुन का झाग कोलॉइड का उदाहरण है , कैसे ?
उत्तर - इसमें परीक्षिप्त अवस्था (गैस)  और परिक्षेपण माध्यम (जल) मिलकर झाग बनाते हैं ।



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