अध्याय 7 विकास
प्रश्न 6. समजात अंग से आप क्या समझते हैं ? समझाइए।
उत्तर : जन्तुओं तथा जीवों के वे अंग (या संरचनाएँ) जो रचना तथा उत्पत्ति में समानता रखते हैं, लेकिन अलग-अलग कार्य के कारण बाह्य रूप में अलग दिखाई देते हैं समजात अंग कहलाते हैं तथा अंगों की यह समानता समजातता (Homology) कहलाती है। मेढक के अग्रपाद, सीलफ्लिपर, चमगादड़ के पंख, मनुष्य के हाथ, घोड़े के अग्रपाद तथा मोल के अग्रपाद समजात अंगों के उदाहरण हैं, क्योंकि ये समान उपस्थिति को दर्शाने वाले जीव इस बात को प्रमाणित करते हैं कि वे विकास की दृष्टि से आपस में जुड़े हैं।
प्रश्न 7. समवृत्तिता क्या है ?
अथवा
समवृत्ति अंग किसे कहते हैं ?
उत्तर : जीवों के इन अंगों या संरचनाओं को जो रचना तथा उत्पत्ति में भिन्न होते हुए भी कार्य में समानता प्रदर्शित करते हैं, समवृत्ति अंग कहलाते हैं । इस प्रकार की समानता समवृत्तिता (Analogy) कहलाती है। तितली के पंख, पक्षी के पंख तथा चमगादड़ के पंख समवृत्तिता प्रदर्शित करते हैं। इनमें रचना तथा उत्पत्ति की दृष्टि से पर्याप्त अन्तर पाया जाता है। तितली के पंख काइटिन, पक्षियों के पंख अग्रपाद पर लगने से तथा चमगादड़ के पंख उँगलियों के बीच त्वचा से बनते हैं। ये अंग इस बात को प्रमाणित करते हैं इनकी उपस्थिति को दर्शाने वाले जीव जैव विकास की दृष्टि से सम्बन्धित नहीं हैं।
प्रश्न 8. समजात तथा समवृत्ति संरचनाओं में उदाहरण सहित अन्तर लिखिए।
अथवा
समजात तथा समवृत्ति रचनाओं में क्या अन्तर है ? प्रत्येक के दो उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर : समजात तथा समवृत्ति रचनाओं में अन्तर
प्रश्न 9. अवशेषी अंग क्या हैं ? मनुष्य के दो अवशेषी अंगों के नाम बताइए।
उत्तर : जीवों के शरीर में कुछ ऐसे अंग पाये जाते हैं, जिनकी शरीर में कोई आवश्यकता नहीं होती। इन अंगों को अवशेषी अंग (Vestigeal organ) कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि पूर्व में ये सक्रिय रहे होंगे लेकिन वातावरण अनुकूलनों के कारण कालान्तर में निष्क्रिय हो गये। मनुष्य की अपेण्डिक्स, पूँछ कशेरुकाएँ, आँख की कन्जक्टाइवा इसके उदाहरण हैं । इन अंगों की उपस्थिति यह दर्शाती है कि जीवों में क्रमिक परिवर्तन हुआ है।
प्रश्न 10. संयोजक कड़ी किसे कहते हैं ? इसके महत्व को समझाइए।
उत्तर : प्रकृति में कुछ ऐसे जीव जातियाँ पायी जाती हैं, जिनमें अपने समीप के दो जीव समूहों (वर्गों) के समान लक्षण पाये जाते हैं, जिनमें से एक वर्ग के जीव कम तथा दूसरे वर्ग के जीव अधिक विकसित होते हैं, इन जीव जातियों को संयोजक कड़ियाँ (Connecting linkes) कहते हैं। प्रकृति में कुछ जीवाश्म जैसेआर्कियोप्टेरिक्स भी संयोजी कड़ियों के रूप में पाये जाते हैं, जिन्हें जीवाश्मीय संयोजक कड़ियाँ कहते हैं। नियोपिलाइना, पेरिपेटस, प्लेटीपससंयोजी कड़ियों के दूसरे उदाहरण हैं । नियोपिलाइना एक प्राचीन मोलस्क है, जिसमें मोलस्क के समान कवच, मेण्टल तथा पाद पाये जाते हैं, लेकिन गलफड़ नेफ्रिडिया तथा जनन ऐनेलिडा के समान होते हैं । अतः यह मोलस्क एवं ऐनेलिडा के बीच की संयोजक कड़ी है।
प्रश्न 11. डार्विन के प्राकृतिक वरणवाद की कोई तीन प्रमुख आलोचनाएँ लिखिए।
अथवा
डार्विन के प्राकृतिक वरणवाद की चार आलोचनाएँ लिखिए।
उत्तर : डार्विनवाद की चार प्रमुख आलोचनाएँ निम्नलिखित हैं -
- इनके अनुसार छोटी-छोटी विभिन्नताएँ पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रबल होती हैं फलतः नयी जातियाँ पैदा होती हैं, लेकिन आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार छोटी विभिन्नताओं के कारण नयी जातियाँ पैदा नहीं हो सकतीं।
- डार्विनवाद योग्यतम की उत्तरजीविता की बात तो करता है, लेकिन इनकी उत्पत्ति के बारे में कुछ नहीं बताता।
- डार्विनवाद जीनों के कुछ अंगों के अतिविशिष्टीकरण की व्याख्या नहीं करता कि इसके कारण कुछ जातियाँ क्यों नष्ट हुई। जैसे-आइरिस हिरण की मृत्यु उनकी बड़ी सींगों के कारण हुई। यदि प्राकृतिक वरणवाद सही है, तब प्रकृति ने उन अंगों की अतिविशिष्टीकरण कैसे होने दिया।
- डार्विनवाद ह्यसी (Degeneration) विकास का कोई उल्लेख नहीं करता।
- डार्विनवाद अवशेषी अंगों के बारे में कोई प्रमाणिकता प्रस्तुत नहीं करता।
प्रश्न 12. डार्विन को विकासवाद की प्रेरणा देने वाली दो घटनाओं को लिखिए।
उत्तर : डार्विन ने भ्रमण के दौरान गैलापैंगों द्वीप पर पायी जाने वाली एक प्रकार की चिड़िया (Linch) तथा दूसरे जन्तुओं में एक वातावरण में रहने के बाद भी कई विभिन्नताएँ देखीं, जिससे उन्हें विभिन्नता की उत्पत्ति के महत्व का ज्ञान हुआ।
कबूतरबाजों द्वारा खराब गुणों वाले कबूतर को मारकर पीढ़ी-दर-पीढ़ी स्वस्थ कबूतर पैदा करते देखकर उन्हें प्राकृतिक चयन के महत्व का ज्ञान हुआ। उपर्युक्त दोनों घटनाओं ने प्राकृतिक चयनवाद को प्रस्तुत करने में मुख्य भूमिका निभायीं।
- परिवर्तित वातावरण के प्रभाव के परिणामस्वरूप जीवों में नयी आवश्यकताएँ पैदा होती हैं।
- इन नयी आवश्यकताओं के कारण जीवों में नयी आदतें आती हैं।
- नयी आदतों के अनुसार शरीर के कुछ अंगों का उपयोग या उसका अनुप्रयोग होता है।
- अंगों के उपयोग या अनुप्रयोग के फलस्वरूप जीव की शारीरिक रचनाओं में कुछ परिवर्तन होता है अर्थात् नये उपार्जित लक्षण बनते हैं।
- इन उपार्जित लक्षणों की वंशागति होती है।
- इस तरह उपार्जित लक्षणों की वंशागति के कारण नयी जातियाँ पैदा होती हैं।
प्रश्न 13.
लैमार्कवाद तथा डार्विनवाद की तुलना कीजिए।
उत्तर
लैमार्क तथा डार्विन दोनों ने जिराफ के माध्यम से अपने-अपने सिद्धान्तों की व्याख्या की है। जिसकी तुलना निम्नलिखित प्रकार से कर सकते हैं-
प्रश्न 14.
जैव विकास के लैमार्कवाद को संक्षिप्त में समझाइए।
उत्तर
जीव बैप्टिस्टेडी लैमार्क प्रथम ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने विकास को विस्तारपूर्वक समझाया जिसे हम लैमार्कवाद के नाम से जानते हैं। अपने सिद्धांत का उल्लेख इन्होंने अपनी पुस्तक ‘फिलॉसफीक जूलॉजिक’ में किया। जिसे लैमार्किज्म अथवा उपार्जित लक्षणों की वंशागति के सिद्धांत के नाम से जानते सके।
लैमार्क के इस वाद को संक्षिप्त में क्रमबद्ध ढंग से निम्न प्रकार से व्यक्त कर सकते हैं
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