अध्याय 3 मानव जनन

प्रश्न.वृषण तथा अण्डाशय के बारे में प्रत्येक के दो-दो प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- वृषण के कार्य- शुक्राणुओं का निर्माण करना।
वृषण में स्थित अन्तराली कोशिकाओं द्वारा नर हॉर्मोन (टेस्टोस्टेरॉन) उत्पन्न करना जिसके कारण नर में द्वितीयक लैंगिक लक्षणों का विकास होता है।

अण्डाशय के कार्य-
अण्डाणु का निर्माण करना।
एस्ट्रोजन हॉर्मोन का स्त्रावण करना जो मादा में द्वितीयक लैंगिक लक्षणों के लिए उत्तरदायी है।

प्रश्न 5.शुक्रजनक नलिका की संरचना का वर्णन कीजिए।
उत्तर - प्रत्येक वृषण पालिका के अंदर एक से लेकर तीन अतिकुंडलित शुक्रजनक नलिकाएँ (सेमिनिफेरस ट्यूबुल्स) होती है जिनमें शुक्राणु पैदा किए जाते हैं। प्रत्येक शुक्रजनक नलिका का भीतरी भाग दो प्रकार की कोशिकाओं से स्तरित होता है जिन्हें नर जर्म कोशिकाएँ (शुक्राणुजन/स्पर्मेटोगोनिया) और सर्टोली कोशिकाएँ कहते हैं । (चित्र (a) देखें)। र जर्म कोशिकाएँ अर्द्धसूत्री विभाजन (या अर्धसूत्रण) के फलस्वरूप शुक्राणुओं का निर्माण करती है जबकि सर्टोली कोशिकाएँ जर्म कोशिकाओं को पोषण प्रदान करती है। शुक्रजनक नलिकाओं के बाहरी क्षेत्र को अंतराली अवकाश (इंटरस्टीशियल स्पेस) कहा जाता है।

इसमें छोटी-छोटी रूधिर वाहिकाएँ और अंतराली कोशिकाएँ (इंटरस्टीशियल सेल्स) या लीडिंग कोशिकाएँ होती हैं। 
लीडिंग कोशिकाएँ पुंजन (एंड्रोजन) नामक वृषण हॉर्मोन संश्लेषित व स्त्रावित करती हैं। यहाँ पर कुछ अन्य कोशिकाएँ भी होती हैं जो प्रतिरक्षात्मक कार्य करने में सक्षम होती हैं ।
वृषण की शुक्रजनक नालिकाएँ वृषण नलिकाओं के माध्यम से शुक्रवाहिकाओं में खुलती हैं।
यह शुक्रवाहिका वृषण से चलकर अधिवृषण में खुलती हैं, जो प्रत्येक वृषण के पश्च सतह पर स्थित होती हैं। 
यह अधिवृषण शुक्रवाहक की ओर बढ़ते हुए उदर की ओर ऊपर जाती हैं और मूत्राशय के ऊपर की ओर लूप बनाती हैं ।
इसमें शुक्राशय से एक वाहिनी आती है और मूत्र मार्ग में स्खलनीय वाहिनी के रूप में खुलती है।
ये नलिकाएँ वृषण से प्राप्त शुक्राणुओं का भंडारण तथा मूत्र मार्ग से इनका बाहर स्थानांतरण करती हैं।

प्रश्न : शुक्राणुजनन क्या है ? संक्षेप में शुक्राणुजनन की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर : शुक्राणुजनन (Spermatogenesis)- प्रजनन अंगों में युग्मकों के निर्माण की प्रक्रिया को युग्मकजनन कहते हैं। जब युग्मकजनन की क्रिया वृषण में होती है तथा शुक्राणुओं का निर्माण होता है तब इसे शुक्राणुजनन (Spermatogenesis)
कहते हैं। शुक्राणुओं का निर्माण जनन उपकला (Germinal Epithilium) द्वारा होता है।

शुक्राणुजनन की क्रिया निम्नलिखित चरणों में पूर्ण होती -

1. द्विगुणन प्रावस्था (Multiplication Phase)- वृषण में शुक्राणु नलिकाओं (Seminiferous tubules) की दीवार जर्मिनल एपिथीलियम से स्तरित होती है। कुछ जर्मिनल एपिथीलियम बड़े आकार की हो जाती हैं, जिसे स्पर्मेटोगोनियम (Spermatogonium) कहते हैं। जर्मिनल एपिथीलियम में समसूत्री विभाजन द्वारा स्पर्मेटोगोनियम का निर्माण होता है।

2. वृद्धि प्रावस्था (Growth Phase) –
इस प्रावस्था में स्पर्मेटोगोनियम भोज्य पदार्थ का संचय करके बड़े आकार की हो जाती है, जिसे प्राथमिक स्पर्मेटोसाइट (Primary spermatocyte) कहते हैं।

3. परिपक्वन प्रावस्था (Maturation Phase)-
इस प्रावस्था में प्राथमिक स्पर्मेटोसाइट का दो बार विभाजन होता है। प्रथम विभाजन अर्द्धसूत्री होता है, जिससे गुणसूत्र की संख्या आधी रह जाती है। इन अगुणित कोशिकाओं को द्वितीयक स्पर्मेटोसाइट (Secondary spermatocyte) कहते हैं। द्वितीयक स्पर्मेटोसाइट का दूसरा परिपक्वन विभाजन होता है, जिससे 4 कोशिकाएँ बनती हैं। इन कोशिकाओं को स्पर्मेटिड (Spermatid) कहते हैं। इन 4 स्पर्मेटिड से 4 शुक्राणुओं (Sperms) का निर्माण होता है।

प्रश्न .शुक्राणुजनन की प्रक्रिया के नियमन में शामिल हॉर्मोनों के नाम बताइए।
उत्तर - शुक्राणुजनन की प्रक्रिया के नियमन में निम्न हॉर्मोन शामिल होते हैं-
1.गोनैडोट्रॉपिन रिलीजिंग हॉर्मोन
2.ल्यूटीनाइजिंग हॉर्मोन (LH)
3.फॉलिकल स्टीमुलेटिंग हॉर्मोन (FSH)
4.टेस्टोस्टेरॉन।

प्र. शुक्राणु का नामांकित आरेख बनाइए।
                 अथवा
शुक्राणु की संरचना का नामांकित चित्र बनाइए एवं विभिन्न भागों का वर्णन कीजिए।
उत्तर - शुक्राणु की सरंचना - शुक्राणु नर युग्मक है। यह अगुणित संरचना एवं नर जनन इकाई है। शुक्राणु जनन (Spermatogenesis) द्वारा शुक्राणु का निर्माण होता है।
शुक्राणु का शरीर तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है
1.सिर भाग (Head piece)
2.मध्य भाग (Middle piece)
3.पूँछ (Tail)

1. सिर भाग (Head piece)—सिर का आकार शंक्वाकार होता है। इस भाग पर ऐक्रोसोम पाया जाता है। यह शुक्राणु को अण्डाणु में प्रवेश के लिए सहायता करता है। इस भाग में केन्द्रक (Nucleus) एवं केन्द्रकीय पदार्थ (Nuclear mate- Middle piece Axial filament rial) पाये जाते हैं। इस भाग में समीपस्थ सेन्ट्रिओल पाया जाता है।
2. मध्य भाग (Middle piece)—इसमें अक्षीय तन्तु के आधारकाय (Basal body) पाया जाता है। अक्षीय तन्तु के चारों ओर माइटोकॉण्ड्रिया चित्र-शुक्राणु की संरचना का आवरण पाया जाता है। यह भाग शुक्राणु का ऊर्जा केन्द्र है।

3. पूँछ (Tail)—यह शुक्राणु का पिछला एवं पतला भाग है। इसमें अक्षीय तन्तु पाये जाते हैं । यह ऊर्जा की सहायता से प्रचलन कर सकता है।

प्रश्न - अण्डजनन क्या है ? अण्डजनन की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
उत्तर - अण्डजनन- वह क्रिया जिसके द्वारा अण्डाशय के अन्दर अण्डाणु का निर्माण होता है।
ये निम्नलिखित चरणों में पूर्ण होती है

1. प्रोलीफरेशन प्रावस्था-
इस प्रावस्था में अण्डाशय के जनन स्तर की कोशिकाएँ विभाजित होकर कोशिका गुच्छ बनाती हैं, जिसे पुटिका (Follicle) कहते हैं। पुटिका की एक कोशिका बड़ी होकर ऊगोनियम बना देती है।

2. वृद्धि प्रावस्था-
इस प्रावस्था में ऊगोनिया आकार में बढ़ जाती है, जिसे प्राथमिक ऊसाइट कहते हैं।

3.परिपक्वन प्रावस्था- 
इस प्रावस्था में प्राथमिक ऊसाइट में अर्द्धसूत्री विभाजन होता है। प्रथम अर्द्धसूत्री विभाजन असमान होता है, जिसमें से बड़ी कोशिका को द्वितीयक ऊसाइट तथा छोटी कोशिका को ध्रुवीय काय कहते हैं। द्वितीय अर्द्धसूत्री विभाजन में द्वितीयक ऊसाइट में फिर से असमान विभाजन होता है, जिसमें से बड़ी कोशिका अण्डाणु का निर्माण करती है। शेष बनी तीनों छोटी कोशिकाओं को ध्रुवीय काय कहते हैं।

प्रश्न .शुक्रीय प्रद्रव्य (सेमिनल प्लाज्मा) के प्रमुख संघटक क्या है ?
उत्तर - शुक्रीय प्रद्रव्य (सेमिनल प्लाज्मा ) के प्रमुख संघटक हैं-फ्रक्टोज, कैल्सियम आयन, कुछ एन्जाइम व प्रोस्टाग्लैंडिन्स।

प्रश्न .
पुरुष की सहायक नलिकाओं एवं ग्रन्थियों के प्रमुख कार्य क्या हैं ?
उत्तर - पुरुष की सहायक नलिकाओं एवं ग्रन्थियों के प्रमुख कार्य निम्न हैं
1. सहायक नलिकाओं के कार्य

i.वृषण जालिका (Rete Testis)-
शुक्रजनन नलिका से प्राप्त शुक्राणुओं को वास इफेरेन्शिया (Vas efferentia) तक पहुँचाना।

ii. वास इफेरेन्शिया (Vas efferentia)-
अधिवृषण तक शुक्राणुओं को पहुँचाना।

iii. अधिवृषण (Epididymis)-
शुक्राणुओं को अधिवृषण में संगृहीत किया जाता है । यहाँ शुक्राणुओं का परिपक्वन होता है।

iv.शुक्रवाहक (Vas deference)-
शुक्राणुओं का वहन करना तथा मूत्रमार्ग द्वारा बाहर स्थानान्तरित करना।

Q.आर्तव चक्र क्या है ? आर्तव चक्र का नियमन कौन-से हॉर्मोन करते हैं ?
उत्तर - आर्तव चक्र (Menstruation)-प्राइमेट्स के मादाओं में पाये जाने वाले जनन चक्र को आर्तव चक्र/मासिक धर्म या रजोधर्म कहते हैं। स्त्रियों में रजचक्र/रजोधर्म/ऋतुस्राव 28/29 दिन का होता है। प्रथम रजचक्र तरुणावस्था (Puberty) में प्रारंभ होता है। इसे रजो दर्शन (Menarche) कहते हैं। आर्तव चक्र के समय स्त्रियों की योनि से महीने में एक बार रक्त स्राव होता है जो 3-5 दिनों तक जारी रहता है। 50 वर्ष की उम्र में यह चक्र लगभग समाप्त हो जाता है। इस अवस्था को रजोनिवृत्ति (Menopause) कहते हैं । तथा गर्भवती महिलाओं में आर्तव चक्र रुक जाता है।
आर्तव चक्र का नियमन निम्नलिखित हॉर्मोन करते हैं
1.गोनैडोट्रॉपिन
2.ऐस्ट्रोजन
3.ल्यूटीनाइजिंग हॉर्मोन
4.फॉलिकल स्टीमुलेटिंग हॉर्मोन (FSH) तथा
5.प्रोजेस्ट्रॉन।

प्रश्न - प्रसव क्या है ? प्रसव को प्रेरित करने में कौन-से हॉर्मोन शामिल होते हैं ?
उत्तर - प्रसव - गर्भवती मादाओं के गर्भस्थ शिशु के बाहर निकलने की क्रिया को शिशु जन्म या प्रसव कहा जाता है।
प्रसव एक जटिल तंत्रि-अंत:स्रावी (Neuro-endocrine) क्रियाविधि द्वारा प्रेरित होता है।
प्रसव के लिए संकेत पूर्ण विकसित गर्भ एवं अपरा से उत्पन्न होते हैं, जो गर्भाशय में हल्के संकुचन को प्रेरित करते हैं। जिन्हें गर्भ उत्क्षेपन प्रतिवर्त (फीटल इंजेक्शन रिफ्लेक्स) कहते हैं ।
यह मातृ पीयूष ग्रंथि से ऑक्सीसीटोसीन गर्भाशय पेशी पर क्रिया करता है और इसके कारण गर्भाशय में तीव्र संकुचन प्रारंभ हो जाता है।
गर्भाशय संकुचनों तथा ऑक्सीटोसीन स्राव के बीच लगातार उद्दीपक प्रतिवर्त के कारण यह संकुचन अत्यधिक तीव्र होता जाता है। इसके परिणामस्वरूप शिशु माता के गर्भाशय से जनन नाल द्वारा बाहर आ जाता है, इस प्रकार प्रसव की क्रिया सम्पन्न होती है।
प्रसव क्रिया को प्रेरित करने वाले प्रमुख हॉर्मोन्स हैं
1.कार्टिसॉल
2.एस्ट्रोजन
3.ऑक्सीटोसीन।

प्रश्न - रजोनिवृत्ति किसे कहते हैं ? समझाइये।
उत्तर - रजोनिवृत्ति–प्रत्येक स्त्री के प्रजनन काल (12-13 वर्ष की उम्र से 45-50 वर्ष की उम्र तक) में गर्भावस्था को छोड़कर प्रति 26 से 28 दिनों की अवधि पर गर्भाशय से रक्त तथा इसकी आन्तरिक दीवार की श्लेष्म का स्राव होता है। यह स्राव 3 या 4 दिन तक चलता है। इसे ऋतु स्त्राव, रजोधर्म, आर्तव या मासिक धर्म (Menses of Menstruation) कहते हैं,
चूँकि यह एक निश्चित समयान्तराल पर बार-बार होता है, इस कारण इसे मासिक ऋतु स्राव चक्र (Menstruation Cycle) भी कहते हैं। स्त्रियों में 50 वर्ष के बाद ऋतु स्राव नहीं होता, इस अवस्था को रजोनिवृत्ति (Menopause) कहते हैं। रजोनिवृत्ति के बाद गर्भधारण की क्षमता समाप्त हो जाती है तथा स्तन भी ढीले हो जाते हैं। –

प्रश्न : मनुष्य के वृषण के अनुप्रस्थ काट का केवल नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर : 




प्रश्न 3. मादा प्रजनन तन्त्र में फैलोपियन नलिका कहाँ स्थित होती है ? इसका क्या महत्व है ?
उत्तर - 1. मादा प्रजनन तन्त्र में फैलोपियन नलिका दो की संख्या में उदरगुहा के निचले प्रतिपृष्ठ हिस्से में अण्डाशय तथा गर्भाशय के बीच में स्थित होती है।
2. प्रत्येक नलिका की लम्बाई लगभग 10 cm होती है। 
इसका एक सिरा स्वतंत्र तथा कीप के समान होता है, जबकि दूसरा सिरा गर्भाशय से जुड़ा रहता है । 
3. कीप के समान सिरा अण्डोत्सर्ग से निकले अण्डाणु को ग्रहण करके इसे अपने अन्दर की सीलिया की गति के प्रभाव से गर्भाशय में पहुँचाता है ।
4. अण्डाणु देहगुहा में स्वतंत्र होते समय पूर्णतः परिपक्व नहीं होता, अत: इसका परिपक्वन फैलोपियन नलिका में ही होता है। 
5. इन दो कार्यों के अलावा अण्डवाहिनी में ही निषेचन की क्रिया भी सम्पन्न होती है। 
इस प्रकार यह नलिका मादा प्रजनन तन्त्र का मुख्य भाग है।

प्रश्न 4.पुरुषों में होने वाले द्वितीयक लैंगिक लक्षण लिखिए।
उत्तर -
1.आवाज भारी हो जाता है।
2.चेहरे पर मूंछ व दाढ़ी निकल आता हैं तथा शरीर के अन्य भागों पर बाल निकल आते हैं।
3.शरीर सुडौल और बलशाली हो जाता है।
4.कंधे चौड़े हो जाते हैं।
5.वृद्धि के कारण शरीर लम्बाई में बढ़ जाता है। 
उपरोक्त लैंगिक लक्षणों का विकास युवावस्था प्रारंभ होने का संकेत होता है । यह वृष्ण में टेस्टोस्टीरॉन बनना प्रारंभ होने के कारण होता है। यह परिवर्तन 12 वर्ष से 16 वर्ष की आयु में होता है।

प्रश्न 3.फैलोपियन नलिका की रचना एवं कार्य लिखिए।
उत्तर - स्त्री में लगभग 10-10 सेमी लम्बी दो नलिकाएँ उदर गुहा में जननांगों से संबंधित होती हैं जिनका एक सिरा स्वतंत्र तथा झालरदार होता है और अण्डाशय के पास स्थित होता है, इसे फिम्ब्री कहते हैं। इनका दूसरा सिरा गर्भाशय से जुड़ा रहता है । ये नलिकाएँ अण्डाशय से निकले अण्डाणु को फिम्ब्री द्वारा ग्रहण करके गर्भाशय में पहुँचाती हैं। अण्डाणुओं का निषेचन इन्हीं नलियों में होता है। इनकी दीवार पेशीय होती है तथा इनकी आन्तरिक सतह पर सिलिया पाये जाते हैं, जिनकी गति के कारण ही अण्डाणु फिम्बी में आता है। इन नलिकाओं को फैलोपियन नलिका या अण्डवाहिनी कहते हैं। कार्य–अण्डाणुओं को अण्डोत्सर्ग के बाद गर्भाशय में पहुँचाती हैं तथा निषेचन के लिए स्थान प्रदान करती हैं।

प्रश्न 4. अण्डाशय की रचना लिखिए।
उत्तर प्रत्येक स्त्री में गर्भाशय के दोनों तरफ एक-एक की संख्या में एक जोड़ी अण्डाशय मीजोवेरियम झिल्ली द्वारा सधे रहते हैं। 
प्रत्येक अण्डाशय के चारों तरफ एक कोशिका स्तर मोटी जनन उपकला पायी जाती है। 
इसके अन्दर दो भागों में विभाजित संयोजी ऊतक पाया जाता है, इसके बाहरी भाग को कॉर्टेक्स तथा भीतरी भाग को मेड्यूला कहते हैं।
कॉर्टेक्स में हजारों की संख्या में विशिष्ट कोशिकाओं के समूह पाये जाते हैं, जिन्हें अण्डाशयी पुटिकाएँ कहते हैं।

ये पुटिकाएँ चार विकासात्मक अवस्थाओं में होती हैं
1.आदि पुटक-इनके मध्य में एक अपेक्षाकृत बड़ी कोशिका होती है। इसको घेरे हुए अपेक्षाकृत छोटी कोशिकाएँ स्थित होती हैं।
2.प्राथमिक पुटक-ये आदि पुटकों से विकसित होते हैं।
3.वेसिकुलर पुटक-यह प्राथमिक पुटकों से बनता है। इसमें ऊसाइट के चारों तरफ कई कोशिका की मोटी स्तर पायी जाती है।

प्रश्न 6. निषेचित अण्डाणु से तीन जनन स्तरों के निर्माण को समझाइए। तीन जनन स्तरों से बनने वाले अंगों का नाम लिखिए।
उत्तर - निषेचित अण्डाणु में तीन जनन स्तर निर्माण का क्रम निम्नलिखित है

1. मॉरुला (Morula)-
निषेचित अण्डाणु फैलोपियन नलिका में पाया जाता है। निषेचन के बाद निषेचित अण्डाणु में विभाजन प्रारम्भ हो जाता है । विदलन (Cleavage) की क्रिया होलोब्लास्टिक (Holoblastic) होती है। इस क्रिया द्वारा गेंद के समान कोशिकाओं का समूह बनता है, जिसे मॉरुला (Morula) कहते हैं। 3 या 4 दिन के पश्चात् इसका रोपण गर्भाशय में होता है।

2. ब्लास्टुला (Blastula)—
जब गेंद के समान मॉरुला में ब्लास्टोसील (Blastocoel) गुहा का निर्माण हो जाता है, तब भ्रूण की इस अवस्था को ब्लास्टुला (Blastula) कहते हैं।

3. गैस्टुला अवस्था (Gastrula)-
भ्रूण की इस अवस्था में तीन जनन स्तर का निर्माण होता है। इसमें उपस्थित गुहा को आर्केण्ट्रॉन (Archenteron) एवं उपस्थित छिद्र को ब्लास्टोपोर (Blastopore) कहते हैं। इसमें तीन स्तर एक्टोडर्म, मीसोडर्म एवं एण्डोडर्म का निर्माण होता है।

तीन जनन स्तर का निर्माण (Formation of three Germinal layer)
1. एण्डोडर्म का निर्माण (Formation of Endoderm) –
एम्बियोब्लास्ट (Embryoblast) की कुछ कोशिकाएँ अलग होकर ब्लास्टोसील (Blastocoel) में आ जाती हैं। इन कोशिकाओं में तेजी से विभाजन होकर एककोशिकीय स्तर का निर्माण होता है। इस स्तर को एण्डोडर्म (Endoderm) कहते हैं। एम्बियोब्लास्ट की कोशिकाएँ जो एण्डोडर्म स्तर निर्माण में भाग नहीं लेती हैं, एक मोटे स्तर में एक बिम्ब के समान व्यवस्थित हो जाती हैं, जिसे भ्रूणीय बिम्ब (Embryonic disc) कहते हैं।

2. मीसोडर्म का निर्माण (Formation of Mesoderm)-
एण्डोडर्म के निर्माण के पश्चात् भ्रूण लम्बाई में वृद्धि करता है। इसका एक सिरा पतला एवं दूसरा सिरा मोटा हो जाता है। भ्रूणीय डिम्ब में उपस्थित कोशिकाएँ अलग होना प्रारम्भ कर देती हैं। डिम्ब डिस्क से अलग कोशिकाएँ मोटाई में वृद्धि करती हैं एवं भ्रूणीय डिम्ब सं अलग होकर मीसोडर्म स्तर का निर्माण करती हैं।

3. एक्टोडर्म का निर्माण (Formation of Ectoderm) –
भ्रूणीय डिस्क में बची हुई कोशिकाएँ विभाजित होती हैं एवं एक क्रम में व्यवस्थित होकर एक्टोडर्म का निर्माण करती हैं।

तीन जनन स्तर से बनने वाले अंग -
1. एक्टोडर्म (Ectoderm) त्वचा की एपिडर्मिस, तंत्रिका तंत्र अंतरांग, ऐड्रीनल ग्रन्थि का मेड्यूलरी भाग, पीनियल काय, आँख की रेटिना, लेन्स, कॉर्निया, नेसल एपिथीलियम, मुखगुहा, मलाशय।

2. मीसोडर्म (Mesoderm) त्वचा का डर्मिस भाग, वृक्क, जनन अंग, हृदय, लसीका तंत्र, प्लीहा।

3. एण्डोडर्म (Endoderm)-आहार नाल का म्यूकोसा, आमाशय, आँत की ग्रन्थियाँ, यकृत, अग्नाशय, थायरॉइड, अग्र पीयूष, थायमस, फेफड़े, गिल, प्राथमिक जनन कोशिका।


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