Class 11 इकाई 2

प्रश्न 1.
द्विपद नाम पद्धति क्या है? आधुनिक वर्गीकरण के जनक का नाम बताइए।
उत्तर :
नामकरण की वह पद्धति जिसमें नाम का प्रथम पद वंश (genus) तथा द्वितीय पद जाति (species) को निर्दिष्ट करता है, द्विपद नाम पद्धति कहलाती है। आधुनिक वर्गीकरण अर्थात् द्विपद नाम पद्धति के जनक का नाम कैरोलस लीनियस है।

प्रश्न 2.
मोनेरा एवं प्रोटिस्टा का उदाहरण सहित एक प्रमुख लक्षण लिखिए।
उत्तर :
मोनेरा के जीवधारियों में केन्द्रक के स्थान पर कोशिका में केन्द्रकाभ पाया जाता है, जिसे वलयाकार डी०एन०ए० कहते हैं।उदाहरणार्थ : जीवाणु, सायनोबैक्टीरिया, आर्किबैक्टीरिया इत्यादि। 

प्रोटिस्टा के जीवधारियों में कोशिका का वास्तविक केन्द्रक पूर्ण विकसित होता है।उदाहरणार्थ - अमीबा, पैरामीशियम, यूग्लीना इत्यादि।

प्रश्न 3.
जगत प्रोटिस्टा के दो लक्षण तथा दो उदाहरण लिखिए।
उत्तर :

लक्षण :

  1. इसके अन्तर्गत सभी एककोशिकीय यूकैरियोटिक जीव आते हैं तथा
  2. ये प्रायः जलीय जीव होते हैं

उदाहरण :

  1. अमीबा
  2. पैरामीशियम

प्रश्न 4.
कण्डुआ (smut) रोग उत्पन्न करने वाले एक फफूद (कवक) का नाम लिखिए।
उत्तर :
अस्टिलैगो (Ustilago) नामक परजीवी कवक की अनेक जातियाँ विभिन्न अनाजों के पौधों पर कण्डुआ (smut) रोग उत्पन्न करती हैं;जैसे-अस्टिलैगो न्यूडा (Ustilogo nuda) गेहूं में श्लथ कण्ड (loose smut) उत्पन्न करता है।

प्रश्न 5.
उस कवक का नाम लिखिए जिससे पेनिसिलिन प्राप्त होती है।
उत्तर :
पेनिसिलिन (penicillin) पेनिसिलियम (Penicillium) की जातियों; जैसे- पे० नोटेटम (UPBoardSolutions.com) (P, notatum), पे० क्राइसोजीनम, (P, chrysogenum) आदि से प्राप्त होती है।

प्रश्न 6.
उस कवक का वानस्पतिक नाम लिखिए जिसमें आभासीय कवकजाल पाया जाता है।
उत्तर :
बेटेकोस्पर्मम (Batruchospermum)

प्रश्न 7.

बेकरी उद्योग में जिस कवक का प्रयोग किया जाता है उसका वानस्पतिक नाम लिखिए।

उत्तर : यीस्ट : कैरोमाइसीज सेरेविसी (Saccharomyces cerevisiae)

प्रश्न 8.पेनिसिलिन की खोज करने वाले वैज्ञानिक का नाम लिखिए।

उत्तर : पेनिसिलिन एन्टीबायोटिक की खोज एलेक्जेन्डर फ्लेमिंग (Alexander Fleming) ने 1928 में की थी

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.

जन्तु जगत तथा पादप जगत के प्रमुख लक्षण बताइए। या जन्तुओं को परिभाषित करने वाले किन्हीं चार लक्षणों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर :


जन्तु जगत के मुख्य लक्षण


1. कोशिका भित्ति (cell wall) तथा केन्द्रीय रिक्तिका (central vacuole) का अभाव।

2. जन्तु समभोजी पोषण (holozoic nutrition)।

3. उत्सर्जी अंग, संवेदी अंग तथा तंत्रिका तंत्र की उपस्थिति।

4. प्रकाश संश्लेषण व पर्णहरिम का अभाव।

5. तारककाय (centrosome) तथा लाइसोसोम की उपस्थिति।

6. पादप जगत के मुख्य लक्षण

7. कोशिका भित्ति (cell wall) की उपस्थिति।

8. कोशिका में केन्द्रीय रिक्तिका (central vacuole) की उपस्थिति।

9.कोशिका में अकार्बनिक लवणों (inorganic salts) की उपस्थिति।

10. उत्सर्जी अंग (excretory organs), संवेदी अंग (UPBoardSolutions.com) (sense organs) तथा तंत्रिका तंत्र (nervousystem) की अनुपस्थिति।

11. प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis) द्वारा भोजन निर्माण की क्षमता तथा पर्णहरिम | (chlorophyll) की उपस्थिति।

              श्री कोचिंग क्लासेस बेगमगंज 

प्रश्न : पाँच जगत वर्गीकरण की विशेषता बताइए। या जीवन के पाँच जगत का नाम एवं इस वर्गीकरण का आधार लिखिए।

उत्तर :

1.जगत–मोनेरा

2.जगत–प्रोटिस्टा

3.जगत-कवक

4. जगत-पादप

5. जगत-जन्तु

पाँच जगत वर्गीकरण की विशेषताएँ निम्नवत् हैं -

1. इस वर्गीकरण में प्रोकैरियोट को पृथक् कर मोनेरा जगत बनाया गया। प्रोकैरियोट संरचना, कायिकी तथा प्रजनन आदि में यूकैरियोट से भिन्न होते हैं।

2. एककोशिक यूकैरियोट को बहुकोशिक यूकैरियोट से पृथक् कर प्रोटिस्टा जगत में स्थान दिया गया।

3. कवक को पादपों से अलग करके एक कवक जगत बनाया गया। (UPBoardSolutions.com) ये विषमपोषी होते हैं तथा भोजन अवशोषण से ग्रहण करते हैं।

4. प्रकाश संश्लेषी बहुकोशिक जीवों (पौधों) को अप्रकाश संश्लेषी, बहुकोशिक जीवों (जन्तु) से पृथक् कर दिया गया।

5. जैव संगठन की जटिलता, पोषण विधियों तथा जीवन शैली के आधार पर बनाया गया यह वर्गीकरण विकास के क्रम को प्रभावशाली रूप से प्रस्तुत करता है।

प्रश्न . वर्गीकरण की पद्धतियों में समय के साथ आए परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर : वर्गीकरण पद्धति (classification system) जीवों को उनके लक्षणों की समानता और असमानता के आधार पर समूह तथा उपसमूहों में व्यवस्थित करने की प्रक्रिया है। प्रारम्भिक पद्धतियाँ कृत्रिम थीं। उसके पश्चात् प्राकृतिक तथा जातिवृतीय वर्गीकरण पद्धतियों का विकास हुआ।

1. कृत्रिम वर्गीकरण पद्धति (Artificial Classification System) :
इस प्रकार के वर्गीकरण में वर्षी लक्षणों (vegetative characters) या पुमंग (androecium) के आधार पर पुष्पी पौधों का वर्गीकरण किया गया है। कैरोलस लीनियस (Carolus Linnaeus) ने पुमंग के आधार पर वर्गीकरण प्रस्तुत किया था। परन्तु, कृत्रिम (UPBoardSolutions.com) लक्षणों के आधार पर किए गए वर्गीकरण में जिन पौधों के समान लक्षण थे उन्हें अलग-अलग तथा जिनके लक्षण असमान थे उन्हें एक ही समूह में रखा गया था। यह वर्गीकरण की दृष्टि से सही नहीं था।ये वर्गीकरण आजकल प्रयोग नहीं होते।

2. प्राकृतिक वर्गीकरण पद्धति (Natural Classification System) :
प्राकृतिक वर्गीकरण पद्धति में पौधों के सम्पूर्ण प्राकृतिक लक्षणों को ध्यान में रखकर उनका वर्गीकरण किया जाता है। पौधों की समानता निश्चित करने के लिए उनके सभी लक्षणों—विशेषतया पुष्प के लक्षणों का अध्ययन किया जाता है। इसके अतिरिक्त पौधों की आंतरिक संरचना, जैसे शारीरिकी. भ्रौणिकी एवं फाइटोकेमेस्ट्री (phytochemistry) आदि को भी वर्गीकरण करने में सहायक माना जाता है। आवृतबीजियों का प्राकृतिक लक्षणों पर आधारित वर्गीकरण जॉर्ज बेन्थम (George Bentham) तथा जोसेफ डाल्टन हूकर (Joseph Dalton Hooker) द्वारा सम्मिलित रूप में प्रस्तुत किया गया जिसे उन्होंने जेनेरा प्लेंटेरम (Generg Plantarum) नामक पुस्तक में प्रकाशित किया। यह वर्गीकरण प्रायोगिक (practical) कार्यों के लिए अत्यन्त सुगम तथा प्रचलित वर्गीकरण है।

3. जातिवृत्तीय वर्गीकरण पद्धति (Phylogenetic Classification System) :
इस प्रकार के वर्गीकरण में पौधों को उनके विकास और आनुवंशिक लक्षणों को ध्यान में रखकर वर्गीकृत किया गया है। विभिन्न कुलों एवं वर्गों को इस प्रकार व्यवस्थित किया गया है जिससे उनके वंशानुक्रम का ज्ञान हो। इस प्रकार के वर्गीकरण में यह माना जाता है कि एक प्रकार (UPBoardSolutions.com) के टैक्सा (taxa) का विकास एक ही पूर्वजों (ancestors) से हुआ है। वर्तमान में हम अन्य स्रोतों से प्राप्त सूचना को वर्गीकरण की समस्याओं को सुलझाने में प्रयुक्त करते हैं। जैसे कम्प्यूटर द्वारा अंक और कोड का प्रयोग, क्रोमोसोम्स का आधारे, रासायनिक अवयवों का भी उपयोग पादप वर्गीकरण के लिए किया गया है।

प्रश्न  : निम्नलिखित के बारे में आर्थिक दृष्टि से दो महत्वपूर्ण उपयोगों को लिखिए 
(a) परपोषी बैक्टीरिया
(b) आद्य बैक्टीरिया
उत्तर :
(a) परपोषी बैक्टीरिया (Heterotrophic Bacteria) :
परपोषी बैक्टीरिया का उपयोग दूध से दही बनाने, प्रतिजीवी (antibiotic) उत्पादन में तथा लेग्युमीनेसी कुल के पौधों की जड़ों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण (nitrogen fixation) में किया जाता है।
(b) आद्य बैक्टीरिया (Archaebacteria) :
आद्य बैक्टीरिया का उपयोग गोबर गैस (biogas) निर्माण तथा खानों (mines) में किया जाता है।

प्रश्न : डाइएटम की कोशिका भित्ति के क्या लक्षण हैं?
उत्तर : डाइएटम की कोशिका भित्ति में सिलिका (silica) पाई जाती है। कोशिका भित्ति दो भागों में विभाजित होती है। ऊपर की एपिथीका (epitheca) तथा नीचे की हाइपोथीका (hypotheca)। दोनों साबुनदानी की तरह लगे होते हैं। डाइएटम की कोशिका भित्तियाँ (UPBoardSolutions.com) एकत्र होकर डाइएटोमेसियस अर्थ (diatomaceous earth) बनाती हैं।


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